गुरुवार, 30 मार्च 2017

स्वाद, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए अदरक की खेती

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर 
प्रोफ़ेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यलाय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

स्वाद और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी मसाले वाली  फसलों में अदरक का महत्वपूर्ण स्थान है। अदरक के कंदों को कच्चा अथवा  सुखाकर सोठ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अदरक के कंद  में तीव्र गंध जिन्जिविरेन नामक रसायन के कारण होती है जो उसके वाष्पशील तेल में पाया जाता है। अदरक का प्रयोग चटनी, आचार बनाने, विभिन्न पेय पदार्थ बनाने में,  सब्जी और चाय का जायका बढाने में किया जाता है।  स्वास्थ्य की दृष्टि से अदरक गर्म, क्षुधावर्धक,दस्तावार, उत्तेजक, वातनाशक, कृमिनाशक, ह्रदय और गले के लिए उपयोगी है .काफ और वात,अस्थमा,बुखार,जलन, श्वेत कुष्ठ, खून के रोग में भी अदरक का सेवन लाभदायक बताया जाता है. फसल विविधिकरण और प्रति इकाई अधिकतम मुनाफा अर्जित करने के लिए अदरक एक महत्वपूर्ण कन्दीय फसल है। अदरक की खेती से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए आधुनिक शस्य तकनीक अग्र प्रस्तुत है .

उपयुक्त जलवायु एवं मृदा 

अदरक की अच्छी फसल के लिए गर्म और नम जलवायु उत्तम रहती है।   बेहतर  फसल के वातावरण का तापमान 19-28 डिग्री सेल्शियस तथा आद्रता 70-90 % होना अच्छा मन गया है।  इस फसल को कृषि वानिकी के तहत भी यानि छायादार स्थानों पर भी उगाया जा सकता है .अदरक की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली जीवांशयुक्त दोमट भूमि  उपयुक्त  पाई गई है । मृदा का पी एच मान 6-6.5 अच्छा माना।  भारी भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी नहीं रहती है . मार्च-अप्रैल माह में खेत की अच्छी तरह से जुताई करके उसमें आवश्यकतानुसार सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए। सम्पूर्ण खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बाॅट लिया जाता है। इन क्यारियों में 2-2.5 मीटर लम्बी मेड़ बनाते हैं तथा अदरक की बुआई मेड़ पर की जाती है। अदरक की खेती बार-बार एक ही खेत में नहीं करना चाहिए।
सुप्रभा : यह किस्म 230 दिन में तैयार होती है जिसकी उत्पादन क्षमता 16-17 टन (ताजे कंद) प्रति हेक्टेयर होती है।
सुरुचि:  यह किस्म 218  दिन में तैयार होती है जिसकी उत्पादन क्षमता 11 -12  टन (ताजे कंद) प्रति हेक्टेयर होती है।
सुरभि :यह किस्म 225  दिन में तैयार होती है जिसकी उत्पादन क्षमता 17 -18  टन (ताजे कंद) प्रति हेक्टेयर होती है।
हिमगिरि:यह किस्म 230 दिन में तैयार होती है जिसकी उत्पादन क्षमता 12 -13  टन (ताजे कंद) प्रति हेक्टेयर होती है।
इनके अलावा कार्तिका, अथिरा, आई.आई.एस.आर. महिमा,आई.आई.एस.आर. वरदा अन्य उन्नत किसमे है जो की 200 दिन में तैयार होकर 22-23 टन उत्पादन देती है।

बुआई का उचित समय 

अदरक की उन्नत किस्मों जैसे  सुप्रभा, सुरुचि, सुरभि आदि  का चयन करें
अदरक की  बुआई फरवरी से लेकर मई  माह तक की जा सकती  है। वैसे अदरक लगाने का उपयुक्त समय मार्च से अप्रैल रहता है। इसकी शीघ्र बुआई से करने से फसल में कीट-रोग का आक्रमण काम होता है और उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है।  बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।

बीज (प्रकन्द) एवं बुआई   

बुआई के लिए उन्नत किस्मों के रोगमुक्त प्रकन्दों का चयन करना चाहिए।   कंदो के  2.5-5.0  सेमी आकार (20-25 ग्राम वजन) में इस प्रकार से काटें ताकि प्रत्येक कंद  में 1-2 आँखे अवश्य रहे।   बुआई से पहले प्रकन्द को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 2.5 ग्राम मैनकोजेब  प्रति लीटर पानी के घोल में 15-20 मिनट तक उपचारित करके छायादार स्थान में सुखाने के पश्चात बुआई करनी चाहिए। प्रति हैक्टर 20-25  कुन्तल प्रकन्द की आवश्यकता होती है । बुआई मेड़ पर 25-30 सेमी. लाइन से लाइन तथा 20 सेमी. प्रकन्द से प्रकन्द की दूरी पर 5-10 से.मी. की गहराई पर की जानी चाहिए। बुआई के समय प्रकन्दों को मिट्टी से ढकने के बाद पलवार से ढकना आवश्यक है । पलवार की मोटाई 5 से 7 से.मी. होनी चाहिए जिससे कि सूर्य का प्रकाश मिट्टी की सतह तक न पहॅुच सके। 

खाद एवं उर्वरक  

खेत की तैयारी के समय 10-20  टन गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी  में मिलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। उर्वरक का प्रयोग मिट्टी के परीक्षण के अनुसार करना लाभकारी होता है। फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की एक तिहाई मात्रा अन्तिम जुताई के समय मिट्टी में मिलानी चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में बाॅटकर बुआई के 30-35  दिन और 50-60  दिन बाद कूंडों में  दी जानी चाहिए।

अदरक में आवश्यक है सिंचाई 

कंद लगाने के बाद खेत में हल्की सिचाई करें इसके बाद वर्षा ऋतु आने के पूर्व 10-12 दिन के अंतराल से सिचाई करना चाहिए । बरसात में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु जलनिकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। खुदाई से लगभग एक माह पूर्व सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। इस समय अदरक की पत्तियाॅ पीली पड़ने लगती हैं।

पलवार प्रयोग,निराई-गुड़ाई तथा मिट्टी चढ़ाना    

अदरक की फसल में कार्बनिक पलवार डालने से काफी लाभ होता है। पेड़ों की पत्तियाॅ, गन्ने की सूखी पत्तियाॅ, खरपतवार, धान की पुवाल आदि पलवार के रुप में प्रयोग की जा सकती है।  पलवार डालने से मिट्टी में नमी संचित रहने के साथ तापमान पर उचित नियंत्रण रहता है। साथ ही खरपतवार की अधिक समस्या नहीं रहती। 
अदरक के पौधों पर मिट्टी चढ़ाना अच्छा होता है। पूरी बढ़वार होने तक खेत को खरपतवार रहित रखना चाहिए। अगस्त-सितम्बर में  निराई-गुड़ाई और पौधों पर मिट्टी चढाने का कार्य संपन्न कर लेना चाहिए ।

फसलचक्र और अन्तः फसल   

अदरक की फसल में मृदुसड़न की समस्या प्रायः देखी गई है। अतः प्रभावित खेत में एक बार फसल लेने के बाद दूसरे वर्ष खेत  बदल देना उचित रहता है। अदरक की दो पंक्तियों के बीच एक पंक्ति मक्का अथवा अरंडी  की ली जा सकती है, जो मुख्य फसल को छाया भी प्रदान करती है, साथ ही साथ अतिरिक्त आमदनी का स्रोत भी है। मैदानी क्षेत्र में अदरक की खेती आम तथा पपीते के बाग में अन्तः फसल के रुप में भी की जाती है।

खुदाई एवं उपज  

अदरक की फसल लगभग 180-200 दिनों  में तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाॅ पीली होकर सूखने लगती हैं तब फसल खोदने लायक हो जाती है। ताजी खाने के लिए तथा बाजार में अच्छे भाव पर बिक्री हेतु अदरक की खुदाई बोने के 5-6 माह बाद से प्रारम्भ की जा सकती है। एक हैक्टर में औसतन 100-150 कुन्तल हरी परिपक्व अदरक की उपज मिल जाती है।

अदरक से सोंठ बनाना  

खुदाई के बाद पहले अदरक के प्रकन्दों को अच्छी तरह साफ कर लिया जाता है। फिर उसे रातभर पानी में रखते हैं । दूसरे दिन प्रकन्दों का ऊपरी छिलका बाॅस की पैनी खपच्ची या स्टील के चाकू से खुरच कर निकालते हैं और प्रकन्दों को धूप में बराबर फैलाकर समय-समय पर पलटते हुए लगभग एक सप्ताह तक सुखाते हैं । सूख जाने के बाद प्रकन्दों की सतह को फिर हाथ से रगड़कर अच्छी तरह साफ कर लेते हैं । इस प्रकार सूखी हुई अदरक कच्चे ताजे भार का लगभग 20 प्रतिशत रह जाती है।  बीज के लिए स्वस्थ एवं बिना कटे प्रकन्दों को  मैनकोजेब (20 ग्राम प्रति 10 ली0 पानी) में उपचारित करके किसी सूखे, ऊॅचे एवं छायादार स्थान पर एक उचित वायु संचारयुक्त गढ्ढे में भण्डारित किया जा सकता है । यह भण्डारित प्रकन्द लगभग 5 माह पश्चात बीज के रुप में प्रयोग में लाये जा सकते हैं।


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