डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
आज के दिन यानि 21 मार्च को हम लोग
विश्व वानिकी दिवस मनाते है और भारत में यह परंपरा वर्ष 1950 से चली आ रही है। दुनिया के सभी देश वन सम्पदा के महत्त्व को समझें तथा अपने अपने देश के वनों-जंगलों का सरंक्षण और
वृक्षारोपण के प्रति जन जागरूकता अभियान चलाने के उद्देश्य से वानिकी दिवस का आयोजन किया जाता है । प्राक्रतिक
संसाधनों में वनों का सबसे अधिक महत्व है और इसे पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक माना
गया है। वृक्षों से ही जल हैं, जल से रोटी है और रोटी ही जीवन का प्रमुख आधार है।
भारत की अमूमन 65 % कृषि भूमि असिंचित है अर्थात इतने बड़े भूभाग पर खेती-किसानी
पूरी तरह वर्षा जल पर निर्भर करती है। बीते 10-15 वर्षों से भारतीय मानसून का मिजाज बदला बदला सा लगता है क्योकि प्रति
वर्ष देश के अनेक राज्यों में या तो भारी सूखा-अकाल या फिर अनेक क्षेत्रों में
किसान बाढ़ की बिभीषिका से झूझते नजर आते है। दरअसल आज सभी भारतीय हृदयों में असन्तोष भरा है।
क्योंकि हमारे खाने को अन्न नहीं। हमारे पास अन्न नहीं है; क्योंकि पानी संग्रह करने की पुरानी पद्धति हम हस्तगत नहीं कर सके।
हमारे पास पानी नहीं है, वर्षा अनिश्चित है; क्योंकि हमने तरु-महिमा की कभी परवाह नहीं की है । वृक्षों को हम काटने लगे।
वृक्षारोपण आज कागजी कार्यवाही और फैशन बन
गया है, परन्तु उसमें जो धार्मिक श्रद्धा का तत्त्व था,
वह अब देखने को नहीं मिलता है ।मानसून आगमन होते ही प्रति वर्ष वृक्षारोपण
के विश्व रिकॉर्ड बनाए जाते है परंतु वृक्षारोपण के बाद पेड़-पौधे पानी के आभाव में दम
तोड़ देते है या फिर वो पशुओं का भोजन बन जाते है। इसी वजह से हमारे धरातल से हरियाली दिन प्रति दिन गायब
होती जा रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के कारण जलवायु
परिवर्तन, वर्षा जल में गिरावट और अनिश्चितता, भारी वर्षा के कारण मृदा अपरदन के परिणामस्वरूप
भूस्खलन का होना, जैव विविधता में गिरावट, जंगली पशुओं का आबादी क्षेत्र में प्रवेश करना, प्राकृतिक
पर्यटन में गिरावट, निचले क्षेत्रों में बाढ़ का पानी आने जैसे तमाम कारणों से देश का जन जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है और भारी मात्रा में आर्थिक क्षति भी भुगतना पड़ती है ।
वृक्षारोपण का महत्त्व और वनों से लाभ
भारत के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक
क्षेत्रों में वन वृक्षों का विशेष महत्त्व है . महात्मा बुद्ध ने ‘पीपल वृक्ष’ के
नीचे तपस्या करके ज्ञान प्राप्त किया था, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी बौद्ध गया
में देखा जा सकता है। हमारे चारे वेद वनों में ही लिखे गए। अग्निपुराण में
वृक्षों की पूजा का महात्म्य बताया गया है, जिसके अनुसार जो
मनुष्य लोगों के हित के लिये वृक्ष लगाता है, वह मोक्षपद
प्राप्त करता है। वृक्ष लगाने वाला मनुष्य अपने 30,000 भूत
और भावी पितरों को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है। मत्स्यपुराण
में कहा गया है—10 कुएँ बनवाना एक ताल बनवाने के समान है। 10
तालों का निर्माण एक झील के निर्माण के बराबर है। 10 झील बनवाना एक सुपुत्र प्राप्त करने के समान पुण्यकारक है। अग्निपुराण में कहा गया है- ‘दशपुत्रो
समोद्रुमः’ अर्थात् दस पुत्र एक वृक्ष के समान हैं। इसीलिए
जितने अधिक वन होंगे, उतना अधिक पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। वास्तव में वन किसी भी देश की राष्ट्रीय आय के मूल स्त्रोत होते है क्योंकि वनों में छुपे बहुमूल्य खजाने से कोई
भी राष्ट्र समृद्धशाली बन सकता है। पर्यावरण सरंक्षण और जीवन दायिनी ऑक्सीजन और
वर्षा जल देने के अलावा वन हमें कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे
फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव काग़ज़ के लिए
लकड़ी, प्लास्टिक,
रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद आदि. फल और बिभिन्न प्रकार के मसाले भी
वनों से एकत्र किए जाते हैं। नाना प्रकार
के औषधीय और सगंधीय पौधे भी वनों में ही
पाये जाते हैं । पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों
में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं। पेड़ वायुमंडल की कार्बन डाइ आक्साइड
अवशोषित करते हैं और प्राणवायु ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिसकी मानवजाति को सांस लेने के
लिए जरूरत पड़ती है. वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है. पेड़
पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते
हैं. वे सभी जीव-जन्तुओ को सूर्य की गर्मी
और वर्षा से बचाते हैं और पृथ्वी के
तापमान को नियंत्रित करते हैं। इन सब के अलावा वन प्रकाश की परावर्तन घटाते हैं, ध्वनि को नियंत्रित करते हैं और हवा की दिशा को बदलने एवं गति को कम करने
में भी मदद करते हैं । अध्ययनों से ज्ञात होता है की एक वृक्ष अपने 50 वर्ष
के जीवन काल में अदृश्य रूप से 33.50 लाख रुपये मूल्य की अमूल्य सेवाएँ जैसे ऑक्सीजन उत्पादन, वायु शुद्धिकरण, वर्षा, मृदा
सरंक्षण, पशु-पक्षिओं को आश्रय, प्रोटीन रूपांतरण, छाया, इंधन फल-फूल, ओषधियाँ
आदि हमें प्रदान करता है। एक अन्य अध्ययन के
मुताबिक एक हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रति वर्ष ओसतन तीन मीट्रिक टन अशुद्ध वायु ग्रहण
करता है तथा एक मीट्रिक टन शुद्ध वायु देता है । इसके अतिरिक्त 70 मीट्रिक टन धुल
को वृक्ष अपने पत्तों-टहनियो आदि पर रोक लेते है . इस प्रकार हम कह सकते है की वन
पर्यावरण प्रदुषण के नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान तो देते ही है साथ ही प्रथ्वी
के जैव मंडल के लिए फेफड़ो की भूमिका भी बखूबी से निभाते है।
देश में वन क्षेत्र की वर्तमान स्थिति
भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2013 के अनुसार देश में कुल
वनावरण 69.79 मिलियन हेक्टेयर (697898 वर्ग किमी.) है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र
का 21.23 % है . इसी रिपोर्ट के अनुसार
कुला वनावरण और वृक्षावरण का क्षेत्रफल
78. 92 मिलियन हेक्टेयर (789164 वर्ग किमी) बैठता है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.01 % है। भारत के राज्यों में क्षेत्रफल
की दृष्टि से सर्वाधिक अभ्लिखित वन क्रमशः मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र,
छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा में है जबकि न्यूनतम क्रमशः गोवा, हरियाणा, पंजाब, सिक्किम तथा
त्रिपुरा में है। राज्यों/संघीय क्षेत्रों में भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत की
दृष्टि से सर्वाधिक अभिलिखित वन क्रमशः अंडमान निकोबार (86.93%), सिक्किम
(82.31%), मिज़ोरम (79.30%), मणिपुर (78.01), हिमाचल प्रदेश (66.52%)तथा
उत्तराखंड(64.79%) में है। हमारे मध्य प्रदेश में 30.72% क्षेत्र में वन है जबकि छत्तीसगढ़ में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 44.21% क्षेत्र में वन है , जो की राष्ट्रीय औसत से अधिक है। वास्तव में देश और प्रदेशों में घने प्राकृतिक वन घट रहे हैं और जो वृक्षारोपण हो रहा है, वह उतना प्रभावी नहीं कि घने वनों की कमी
की भरपाई कर सके। इसलिए छितरा वन क्षेत्र बढ़ रहा है। सरकार ने वनों को तीन
क्षेत्रों में विभाजित कर दिया है। अति सघन वन, मध्यम सघन वन
तथा छितरे वन हैं। यद्यपि पहले की अपेक्षा देश में कुल वन क्षेत्र बढ़ा है लेकिन घने और मध्यम
स्तर के घने वन कम हुए हैं और छितरे वन ( कहीं -कहीं पेड़ और झाड़ियाँ ) बढ़ रहे हैं। ये प्रवृत्ति वनों के
अंधाधुंध कटाई की तरफ ईशारा करती है। अब छितरे वनों को घने वनों में परिवर्तित करने की आवश्यकता है ।
कितने होंन चाहिए वन क्षेत्र
कितने होंन चाहिए वन क्षेत्र
राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार भू-भाग का 33.33 फीसदी हिस्सा वनों से आच्छान्दित होना चाहिए।
लेकिन देश के 21.02 फीसदी हिस्से पर ही वन
हैं। करीब 2.82 फीसदी भू भाग पर पेड़ हैं। यदि इन्हें भी वन
मान लिया जाए तो देश का कुल वन क्षेत्रफल 23.84 फीसदी ही
बैठता है। जो लक्ष्य से बेहद कम है। हां, उत्तराखंड, हिप्र, जम्मू-कश्मीर समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में
33 फीसदी से अधिक हिस्से पर वन हैं। छत्तीसगढ़, उड़ीसा, गोआ ऐसे हैं जहां वन क्षेत्रफल 33 फीसदी से ज्यादा है। लेकिन विकास परियोजनाओं के चलते यहां भी वनों पर संकट
मंडरा रहा है।
कड़ाई से पालन हो वन सरंक्षण क़ानून
देश में वन संरक्षण कानून कड़ाई से पालन होना चाहिए । विकास या अन्य प्रयोजनों के लिए काटे गए वन क्षेत्रफल के एक तिहाई हिस्से की भरपाई वृक्षारोपण के माध्यम से होना चाहिए । वन संरक्षण हेतु प्रतिवर्ष उत्साह के साथ वन
महोत्सव का आयोजन, वर्षा ऋतु में सामुदायिक
वानिकी द्वारा नए छोटे पौधे रोपने, वनों को लगाकर वन
क्षेत्रफल में वृद्धि करना और लोगों को वनों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु व्यापक
रूप से प्रचार-प्रसार कार्यक्रम व जागरूकता फैलाना ऐसे आवश्यक कदम उठाये जा सकते
हैं।
आप भी करें वृक्षारोपण और पर्यावरण सरंक्षण में सहयोग
पर्यावरण सरंक्षण
और वृक्षारोपण सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें देश के हर नागरिक का
योगदान और भागीदारी होना चाहिए तभी हम स्वच्छ और सुन्दर धरा की कल्पना साकार होते
देख सकते है।अपने
बगीचे, खेतों, कल खरखानों, सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने के लिए आगे आये और लोगों को प्रेरित भी करें । हम सभी को अपने आवागमन के लिए निजी वाहनों की बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करना चाहिए । अपने बगीचे और सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा से ज्यादा
पेड़-पौधे लगाएं। पानी
का किफायत से उपयोग करें। पवन उर्जा, सौर उर्जा और जल उर्जा से चलने वाले
उपकरणों को तरजीह दें। एयर कंडीशन और इस प्रकार की चीजों का कम से कम इस्तेमाल
करें, क्योंकि इससे क्लोरो फ्लोरो
कार्बन गैस उत्सर्जित होती है, जो वायुमंडल की ओजोन परत
को काफी नुकसान पहुंचाती है। नदियों और अन्य जल स्त्रोतों को प्रदूषित न करें, उनमें कचरा न डालें। पॉलीथीन का इस्तेमाल बंद करें। इसकी जगह ईको-फ्रेंडली उत्पाद
(कागज के थैले आदि) प्रयोग में लाएं।
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