डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रमुख वैज्ञानिक (शस्य
विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व
विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
भारत में बसने वाली दुनिया
की 17.84 प्रतिशत आबादी की आवश्यकता 2.4 प्रतिशत जमीन
और 4 प्रतिशत जल संसाधनों से पूरी होती है। देश के कई क्षेत्रों
में विषम जलवायु,मानसूनी
वारिश की अनियमितता से जल स्त्रोतो की कमी तथा विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं
जैसे- सूखा, बाढ़, पाला, ओला
आदि के कारण हमारी खाद्यान्न सुरक्षा खतरे में पड़ती जा रही है । अब हमें प्राकृतिक
संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करते हुए खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए आधुनिक
तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। कृषि में प्लास्टिक मल्चिंग भारत में दूसरी हरित क्रांति
शुरू करने के लिए एक साध्य समाधान है। पानी की कमीं, कीट-रोग और खरपतवार प्रकोप के कारण फसल उत्पादकता में गिरावट होती जा रही है। कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए दिन प्रति दिन जहरीले रासायनिकों का उपयोग किया जा रहा है जो न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है वल्कि पर्यावरण के लिए भी घातक हो रहे है। मृदा में नमी सरंक्षण, सिचाई जल का किफायती उपयोग, खरपतवार, कीट रोग नियंत्रण के लिए प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग वरदान साबित हो रहा है। कृषि और उद्यानिकी में प्लास्टिक मल्चिंग के अनुप्रयोग से भारतीय कृषि में द्वितीय हरित क्रांति का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।
पेड़-पौधों के आसपास की
मिट्टी को प्लास्टिक फिल्म से व्यवस्थित रूप से ढकने की क्रिया को मल्चिंग कहते है। वास्तव में प्लास्टिक मल्चिंग पौधों के चारों तरफ की भूमि
को ढकने में प्रयोग की जाने वाली एक प्लास्टिक फिल्म होती है जो की फसलों, सब्जियों, फलों आदि की समुचित वृद्धि, विकास एवं उत्पादन हेतु
पौधो को अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने के अलावा पौधो की जड़ों के आस पास विद्यमान
सूक्ष्म जलवायु और मिट्टी के तापमान में समन्वय स्थापित करने में मददगार साबित हो
रही है। दरअसल मल्चिंग से मिट्टी में नमीं सरंक्षण, तापमान में वृद्धि और माइक्रोबियल सक्रियता बढती है जिसके फलस्वरूप फसल
उत्पादन और गुणवत्ता में इजाफा होता है। वर्तमान समय में कार्बनिक पलवार की
बड़ी मात्रा में आसानी से उपलब्धता नहीं होने तथा ज्यादा लागत की वजह से, प्लास्टिक
पलवार का उपयोग एक बेहतर विकल्प सिद्ध हो सकता है।
प्लास्टिक मल्च सस्ती, आसानी से उपलब्ध एवं सभी मोटाई व रंगों में उपलब्ध होती
है। मिट्टी से नमी के वाष्पीकरण, पानी का कम उपयोग और मिट्टी कटाव को रोकती है। इस प्रकार
पलवार जल सरंक्षण में एक सकारात्मक भूमिका निभाती है तथा पैदावार बढ़ाने में मदद
करती है।
प्लास्टिक मल्च के
फायदे
Ø प्लास्टिक मल्च से रात्रि के समय भी भूमि में उष्ण तापक्रम कायम रहता है जिससे बीज अंकुरण और नवोदित पौधों की जड़ो का विकास शीघ्रता से होता है।
Ø अपारदर्शक (काली) प्लास्टिक मल्च सूर्य के प्रकाश को भूमि की सतह तक जाने से रोकती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण नहीं होने के कारण खरपतवार वृध्दि अवरुद्ध हो जाती है।
Ø प्लास्टिक मल्च से भूमि और मल्च के मध्य एक सूक्ष्म वातावरण स्थापित होता है जिससे सुक्ष्मजीवियो की सक्रियता बढ़ने से कार्बन डाई ऑक्साइड का स्टार बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप पौधो में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया तेजी से होती है।
Ø वर्षा और हवा के कारण होने वाले मृदा क्षरण को रोकने में प्लास्टिक मल्च सहायक होती है
Ø प्लास्टिक मल्च मृदा नमी के वाष्पोत्सर्जन को रोककर भूमि लवणों को भू-सतह पर आने से रोकती है।
- Ø प्लास्टिक मल्च के प्रयोग से फसल उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
- विभिन्न फसलो के लिए उपयुक्त पलवार का उपज पर प्रभाव
क्र.स.
|
फसल
|
पलवार
मोटाई (माइक्रोन)
|
उपज
में वृध्दि (प्रतिशत)
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1
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आलू, बैंगन, शिमला
मिर्च
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25
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30-40
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2
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टमाटर, फूलगोभी
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25
|
40-45
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3
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मूंगफली
|
07
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60-70
|
4
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गन्ना
|
50
|
50-55
|
5
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अमरुद
|
100
|
25-30
|
प्लास्टिक मल्च के
प्रकार
प्लास्टिक मल्च विभिन्न रंगो जैसे-
काले, पारदर्शी, पीला/ काला, सफेद/काला, काला/लाल पलवार
बाजार में उपलब्ध है ।
1.पारदर्शी मल्च: पारदर्शी
मल्च में सूर्य का प्रकाश भू-सतह तक पहुँचता है. अतः इसके माध्यम से तापीय उपचार
द्वारा मृदा जनित रोगों एवं बीज जनित खरपतवारो पर काबू पाया जा सकता है. पौध शाला
में इस मल्च के प्रयोग से रोग रहित शत प्रतिशत अंकुरण प्राप्त किया जा सकता है।
2. काली मल्च: काली
प्लास्टिक मल्च खरपतवार नियंत्रण के लिए बहुत उपयोगी है क्योंकि अपारदर्शी होने के
कारण सूर्य का प्रकाश भू-सतह तक नहीं पहुँचने से पौधो में प्रकाशसंश्लेषण की
क्रिया नहीं हो पाती है जिससे फिल्म
के नीचे उगने वाले खरपतवार नष्ट हो जाते है।
3. सफ़ेद-काली मल्च: यह
मल्च भूमि को अनुकूल तापक्रम प्रदान करने के साथ साथ कुछ कीड़ो जैसे एफिड और
थ्रिप्स को प्रतिकर्षित यानि भगाने का कार्य करती है .
4. पीली-काली मल्च: यह
मल्च अधिक
गर्म दिनों में भूमि
को उच्च तापक्रम से सुरक्षित कर अनुकूल तापक्रम प्रदान करती है जिससे फसल
वृद्धि अच्छी होती है।
5. लाल-काली मल्च: यह
एक अर्द्ध पारदर्शी (धुंधली) मल्च है जो सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर भूमि का
तापक्रम बढ़ाने के अलावा सूर्य प्रकाश को परावर्तित कर पौधों की नीचे की पत्तियों
को सूर्य प्रकाश उपलब्ध करने में सहायक होती है, जिससे पौधो की बढ़वार, पुष्प और फल निर्माण शीघ्रता से और अधिक मात्रा में होता है.
6. द्वि तरफ़ा रंगीन मल्च: इस
प्रकार की मल्च में बाहरी परत द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रवेश करता है तथा अन्दर की
परत द्वारा विशेष तरंग दैर्ध्य की किरने परावर्तित होकर पौधों पर पड़ती है।
कैसे करें प्लास्टिक
पलवार का चयन
प्लास्टिक
मल्च का चयन खेती के उद्देश्य के अनुसार ही किया जाता है। जैसे खरपतवार
नियन्त्रण, मृदा तापमान को कम व ज्यादा करने एवं रोग नियन्त्रण
इत्यादि। सामान्यत: काली या सफेद काले रंग की प्लास्टिक पलवार का ही
कृषि में उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक पलवार फिल्म की चौड़ाई ऐसी होनी
चाहिए ताकि फसल में शस्य क्रियाए आसानी से संपन्न की जा सके. सामान्यतौर पर फिल्म
की चौड़ाई 90 से 120 सेमी अच्छी मानी जाती है । फिल्म की मोटाई फसल
के प्रकार एवं उसकी अवधि के अनुसार होता है। वार्षिक (लघु अवधि), द्वि-वार्षिक (मध्यम अवधि)
एवं बहुवर्षीय (लम्बी अवधि) फसलों के लिए प्लास्टिक मल्च की मोटाई क्रमशः 20-25, 40-45 एवं 50-100 माइक्रोन
की अनुशंसा की गई है।
ऐसे बिछाएं प्लास्टिक मल्च
पलवार को बीजाई एवं रोपाई
से पूर्व ही लगाया जाता है। खेत में क्यारी बनाने के साथ ही पलवार को बिछा कर
किनारे से दबा दिया जाता है। इस प्रक्रिया को श्रमिको के द्वारा करवाने से समय व
धन का व्यय होता है। अत: वर्तमान में ट्रेक्टर द्वारा पलवार बिछाने वाली मशीन भी
उपलब्ध है।
सब्जियों
की फसल में प्रयोग
सब्जी
वाली फसल लगाये जाने वाले खेत की अच्छी प्रकार साफ़ सफाई और जुताई कर गोबर की खाद
मिलाने के पश्चात पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए . मिटटी परीक्षण
करवाने के पश्चात आवश्यकता अनुसार संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करना
चाहिए । खेत में उठी हुई क्यारी बनाने के उपरान्त उनके उपर ड्रिप सिंचाई की
पाइप लाइन को बिछा ले।फिर सब्जी वाली फसलो के लिए 25 से 30 माइक्रोन
प्लास्टिक मल्च फिल्म बेहतर रहती है . इस फिल्म को उचित
तरीके से सावधानी पूर्वक बिछा दे . फिल्म के दोनों किनारों को मिटटी की परत
से दबा दिया जाता हे। आज कल ट्रैक्टर चालित यंत्र से भी फिल्म बिछाने
का कार्य किया जाने लगा है। अनुसंशित पौध से पौध की दूरी के हिसाब से फिल्म पर आवश्यक लाई में पाइप से छिद्र कर लिए जाते है ।
किये हुए छेदों में बीज या नर्सरी में तैयार पोधों का रोपण करना चाहिए ।
फल वाली फसल में प्रयोग
फलदार पोधों की छाँव जितने क्षेत्र में रहती है, उसमे प्लास्टिक मल्च बिछाना
उचित रहता है। पलवार बिछाने के पूर्व फल वृक्षों के नीचे से घास-पात
उखाड़ के सफाई करने के उपरांत ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन अच्छी प्रकार से सेट
लेना चाहिए . फल
वृक्षों के नीचे पलवार लगाने हेतु 100 माइक्रोन की प्लास्टिक की
फिल्म मल्च उपयुक्त रहती है। उसे हाथों से पौधे के तने के आसपास अच्छे से बिछा
देते है। इसके बाद मल्च के चारों कोनों को 15 से
20 सेमी. मोटी मिटटी की परत से दबा देना चाहिए ।
पलवार बिछाते समय
ध्यान रखें
- Ø पलवार फिल्म में छिद्र पाइप अथवा पंच के माध्यम से सावधानी पूर्वक करें । फिल्म को फटने से बचाए जिससे इसका दुबारा उपयोग किया जा सकें
- Ø फसल के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरकों को पलवार बिछाने से पहले भूमि में मिला देना उपयुक्त रहता है।
- Ø बीजो की बीजाई एवं पौधों की रोपाई पलवार के छिद्रो में सीधी करनी चाहिए।
- Ø पलवार हमेशा सुबह अथवा शाम के वक्त बिछाना चाहिए .
- Ø मल्च फिल्म को बिछाने के बाद उसमें ज्यादा तनाव नहीं होना चाहिये अन्यथा मौसम के तापमान में वृद्धि व कृषि क्रियाओं के समय इसके फटने की संभावना रहेगी।
सिंचाई व्यवस्था
पलवार लगाई गई फसलों में
ड्रिप (बूंद-बूंद) सिंचाई विधि उपयुक्त होती है। इस विधि में लेटरल को पलवार के
नीचे रखा जाता है जिससे सिंचाई एवं उर्वरकीकरण आसान रहता है तथा भूमि में नमी का
संरक्षण रहता है।
पलवार को हटाना एवं
निस्तारण
पलवार को फसल की कटाई के बाद खेत से हटा कर
सही तरह से दुबारा उपयोग के लिए रख देना चाहिए। अगर यह प्रक्रिया नहीं की जाती है
तो पलवार मिट्टी में अपघटित नहीं होती है जिससे खेत में प्लास्टिक प्रदूषण की
समस्या हो सकेती है।
प्लास्टिक मल्चिंग
की लागत
खेत में लगाई जाने वाली फसल के प्रकार और बुवाई विधि के
अनुसार पलवार की लागत कम या अधिक हो सकती है . आमतौर पर सब्जी वाली फसलों में 80 %
क्षेत्र में प्लास्टिक पलवार बिछाने की अनुमानित लागत 20-22 हजार प्रति हेक्टेयर
यानी 2-2.5 प्रति मीटर आ सकती है। इसी प्रकार फल वाली फसलो में 40% क्षेत्र
के आवरण के आधार पर इसकी अनुमानित लागत 14-15 हजार यानि 1.5 प्रति मीटर आ सकती है।
प्लास्टिक मल्चिग
में शासन का अनुदान कितना है। कृषि में पलवार के प्रयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से
राज्य सरकार के उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों को अनुदान
उपलब्ध कराया जा रहा। इस योजना का लाभ लेने के लिए अपने जिले के उधान
बिभाग से सपंर्क कर सकतेहै ।
नोट: यह लेख सर्वाधिकार
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