डॉ.गजेंद्र
सिंह तोमर,
प्रमुख
वैज्ञानिक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा
गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
क्या
है बेबी कॉर्न ?
बेबी
कॉर्न मक्का फसल का अंगुलिका आकार का एक अनिषेचित भुट्टा होता है जो सिल्क
(भुट्टा के ऊपरी भाग में 2-3 सेमी. आयी
रेशमी कोपलें) आने के 2-3 दिन
के अन्दर पौधे से तोड़ लिया जाता है। इस अवस्था में दाने अनिषेचित
(अनफर्टिलाइज्ड ) होते हैं। अच्छे बेबी कॉर्न लंबाई 6-10 सेमी., व्यास
1-1.5 सेमी तथा रंग हल्का पीला होना चाहिए। बेबी कॉर्न की पौष्टिकता कुछ
मौसमी सब्जिओ के समतुल्य या उनसे भी अच्छी होती है. प्रोटीन, विटामिन
तथा लौह के अलावा यह फॉस्फोरस का एक बेहतर स्त्रोत है। रेशेदार प्रोटीन का
भी अच्छा स्त्रोत है जो आसानी से पच जाता है। बेबी कॉर्न का उपयोग सलाद, अचार, भजिया-पकोड़े, सूप,सब्जी, खीर आदि बनाने में किया जाता है।
बेबी कॉर्न फसल की खेती से लाभ
1.फसल विविधिकरण : अल्पावधि में (50-60 दिन) तैयार होने के कारण फसल विविधिकरण के लिए यह
एक आदर्श फसल है। बेबी कॉर्न
के साथ सब्जिओं, दालों, फूलों
आदि की अन्तः फसली खेती आसानी से की जा सकती है। उत्तरी
भारत के अत्यधिक ठण्ड वाले समय (दिसम्बर-जनवरी) को छोड़कर बेबी कॉर्न को साल भर उगाया जा सकता
है I यह
शहरी क्षेत्र के आसपास उगाये जाने के लिए उपयुक्त है।
2.रोज़गार सृजन : बेबी कॉर्न के उत्पादन, विपणन, प्रसंस्करण
और निर्यात की प्रक्रिया में बहुत से लोगो को रोज़गार
प्राप्त होता है।
3. कम समय में धनोपार्जन : सामान्यतः किसानो को फसल से आय प्राप्त करने के
लिये लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ता हैI बेबी
कॉर्न एक अल्प अवधी(50-60 दिन) वाली
फसल हैI अतः किसान कम से कम समय में
अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। पंच सितारा होटलों, शादी-विवाह
समारोहों और पार्टियों में बेबी कॉर्न उत्पादों की अच्छी मांग रहती है अतः बाजार
में बेबी कॉर्न सर्वोत्तम दामों में बिक जाती है।
4. निर्यात की संभावनाएँ : अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेबी कॉर्न की बहुत मांग
है, अतः
अधिक मात्रा में गुणवत्ता युक्त पैदावार का निर्यात कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता
है।
5. पशुओं के लिए उत्तम चारा : बेबी कॉर्न की फसल लेने के पश्चात् इससे प्राप्त
हरे चारे को पशुओं के खीलाया जा सकता है I इसका हरा चारा खिलाने से दुग्ध उत्पादन में
बढोत्तरी होती है।
6. मूल्य संवर्धन : बेबी
कॉर्न से नाना प्रकार के व्यंजन यथा
सब्जी, आचार, चटनी, सूप, सलाद, खीर, हलवा, पकौड़ा, केंडी इत्यादी बनाये जा सकते है जिनकी
सितारा होटलों में अच्छी मांग होती है।
बेबी कॉर्न की फसल से अधिकतम उपज प्राप्त करने के
लिए शस्य कार्य
उपयुक्त
भूमि और खेत की तैयारी
बेबी कॉर्न की खेती उचित जल निकास वाली बलुई मटियार से दोमुट मृदाओं जिसमे वायु संचार अच्छा हो और पी एच मान 6.5-7.5 के मध्य हो, में सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करने के उपरांत एक बार कल्टीवेटर से जुताई करें। अंत में पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। आज कल शून्य भू परिष्करण पद्धति से भी मक्के की खेती की जा रही है।
सही
क़िस्मों का चुनाव
मध्यम
ऊँचाई की जल्दी तैयार होने वाली किस्म/प्रजाति एवं एकल क्रास संकर का चयन करना
चाहिए, जिनकी
सिल्किंग अवधि खरीफ में 45-50 दिनों, वसंत
में 75-80 और
उत्तरी भारत की शीत ऋतू में 100-120 दिन
हो | बेबी कॉर्न की खेती के लिए
एचएम-4, गंगा सफेद-2, पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का-3, वही.एल.-1 व पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का-5 आदि किस्मों का इस्तेमाल करें। निजी कंपनियों के प्रमाणित बीजों को भी उगाया जा
सकता है।
बुवाई का समय
उत्तर
भारत में दिसम्बर एवं जनवरी महीनों को छोड़ कर बेबी
कॉर्न की बुवाई वर्ष भर की जा सकती है | आमतौर पर खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से लेकर
मध्य जुलाई, रबी
में अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से मध्य नवम्बर तथा वसंत ऋतू में जनवरी के प्रथम
सप्ताह में बुआई करना उचित रहता है। आमतौर पर अगस्त
से नवम्बर के बीच लगाई गई फसल के बेबी कॉर्न गुणवत्ता में श्रेष्ठ होते है। दक्षिणी भारत और छत्तीसगढ़ में इसे वर्ष भर उगाया
जा सकता है | पूरे
खेत में एक साथ बेबी कॉर्न की बुवाई न करें। बल्कि, 15
-15 दिन
के अंतराल पर बुवाई करें। उदाहरण के लिए यदि आप दो एकड़ में बेबी कॉर्न
की खेती करना चाहते हैं, तो पहली बार में एक
एकड़ जमीन में बुवाई करें, बाकी
जमीन के दो भाग कर 15 दिन के अंतराल से बुवाई करें। अलग अलग समय
में बेबी कॉर्न तैयार होने से
फसल का बाजार में अच्छा भाव मिलता है। इस प्रकार बाजार
में बेबी कॉर्न की माँग के समय को ध्यान में रखते हुए बुवाई की जाए तो इस फसल से अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
बीज दर
एवं बीजोपचार
बेबी
कॉर्न की किस्म/प्रजाति के दानों के वजन के अनुसार लगभग 22-25 कि॰ ग्रा॰ प्रति हेक्टेयर बीज का प्रयोग करना चाहिए। मक्का की फसल
को टी॰एल॰ बी॰, एम॰ एल॰ बी॰, बी॰
एल॰ एस॰ बी॰ आदि बीमारियों से बचाने हेतु बुवाई
से पहले बीज को एक ग्रा॰ बावीस्टीन तथा एक ग्रा॰ केप्टान मिला कर उपचारित करना चाहिए। रसायन
उपचारित बीज को छाया में सुखाना चाहिए। तना
भेदक (शूट फ्लाई) से बचाव के लिए फिप्रोनिल 4-6 मि॰ ली॰/ कि॰ ग्रा॰ बीज में मिलाना चाहिए।
बुवाई की सही विधि
बेबी
कॉर्न की अच्छी उपज के लिए अनुकूल पौध संख्या स्थापित होना नितांत आवश्यक होता है।
छिड़कवाँ विधि से बीज की बुआई करना फायदेमंद नहीं रहता है। बीज की बुवाई
समतल खेत में कतार विधि से करना चाहिए। उचित
पादप संख्या स्थापित करने के लिए उठे
हुए बेड पर इसकी बुआई करना सर्वथा उचित रहता है।
इसमें बीज की बुआई नियमित दूरी पर बेड
पर की जाती है। बुआई के लिए रेज़्ड बेड प्लांटर उपलब्ध है। इस
विधि से बुआई करने पर पानी की वचत होती है और आदान उपयोग क्षमता में 20-25
% की वचत होती है। इसके
अलावा बिना किसी जुताई (शून्य जुताई विधि) के भी सीधे प्लान्टर
से भी मक्के की बुआई की जा सकती है।पौधों के आकर के हिसाब से पंक्ति से पंक्ति की
दूरी 60 से॰ मी॰ तथा पौधे से पौधे के मध्य 15-20 से॰ मी॰ दूरी रखना चाहिए।
सही उपज के लिए संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन
मक्के में उर्वरक उपयोग जमीन की उर्वरा शक्ति तथा मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए । अच्छी
उपज के लिए खेत की अंतिम जुताई के समय सड़ी
हुई गोबर की खाद 8-10 टन/हे॰ को मिटटी में
मिलाना चाहिए। समान्यतौर पर 150-180: 60:60 :25
कि॰ ग्रा॰/हे. की दर से क्रमशः नत्रजन:स्फुर:पोटाश तथा जिंक सल्फेट
का प्रयोग करना चाहिए। सम्पूर्ण फास्फोरस, पोटाश, जिंक
एवं 10% नाइट्रोजन
की मात्रा बुवाई के समय कूंड में डालना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को चार किस्तों
में अर्थात, 4 पत्तियों की अवस्था में 20%, 8 पत्तियों की अवस्था में 30%, नर मंजरी (झंडो)को तोड़ने
से पहले 25% तथा नर मंजरी को तोड़ने के बाद 15% प्रयोग करने से उर्वरक उपयोग क्षमता और उपज में बढोत्तरी होती है।
समय पर सिचाई
मक्का
की फसल को मौसम, फसल की अवस्था तथा मिट्टी
के अनुसार सिंचाई की जरूरत होती है। पहली
सिंचाई युवा पौध की अवस्था, दूसरी पौधों के
घुटने तक ऊंचाई के समय, तीसरी
फूल (झण्डा) आने से पहले तथा चौथी सिचाई तुड़ाई के ठीक पहले करना चाहिए। वर्षा
ऋतु में सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है परंतु खेत से जल निकासी का समुचित
प्रबंध जरूरी है।
खरपतवार प्रबंधन
बेबी कॉर्न की अधिकतम उपज के लिए खरपतवार प्रबंधन
एक आवश्यक घटक है। खरपतवारों की समय पर रोकथाम नहीं करने से उपज में 30-40 %
तक कमी आ। बेबी कॉर्न की फसल की उचाई घुटनों तक हो जाये तो एक बार हेंड हो से निराई गुड़ाई कर पोधो पर मिटटी चढ़ाने का
कार्य करना चाहिए। इससे खरपतवार नियंत्रित होते है और फसल गिरने से बच
जाती है। खेत
में खरपतवार उगने के पूर्व एट्राजिन (एटाट्राफ) 1.0-1.5 किग्रा॰/ हे. की दर से 500-600 ली॰
पानी मे घोलकर छिड़काव करने से अधिकतर चौड़ी
पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम हो जाती है। छिड़काव करने वाले व्यक्ति को आगे के बजाय पीछे की
ओर बढ़ना चाहिए ताकि मृदा में बनी एट्राजीन की परत को क्षति ना पहुंचे। जरुरत
पड़ने पर 1-2 बार खुरपी से गुड़ाई कर
देने से बाकी बचे हुए खरपतवारों की रोकथाम हो
जाती है।
अंतः फसली खेती से अतिरिक्त आय
अन्तः फसल से बेबी कॉर्न की उपज पर कोई बुरा
प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि दलहनी अन्तः फसलें
मृदा उर्वरता को बढ़ाती है | खरीफ
मौसम में बेबी कॉर्न के साथ लोबिया, उड़द, मूँग,ग्वारफली आदि
फसलें उगाई जा सकती है | रबी
के मौसम में आलू, मटर, राजमा, चुकन्दर, प्याज, लहसुन, पालक, मेथी, फूलगोभी, पत्ता
गोभी, ब्रोकली, शलजम, मूली, गाजर, राजमा, हरी
प्याज आदि फसलें ली जा सकती है | ग्रीष्म ऋतु में
बेबी कॉर्न के साथ लोबिया, गुआरफली, मुंग, उर्द
आदि को उगाया जा सकता है।
गुणवत्ता के लिए आवश्यक है नर मंजरी निकलना
बेबी
कॉर्न की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नर मंजरियों को निकालना (डिटेसलिंग) एक अनिवार्य प्रक्रिया है। पौधों की
सबसे ऊपरी पत्ती (फ्लेग लीफ) से झण्डा बाहर दिखाई देते ही इसे तुरंत निकाल देना
चाहिए | पौधो
से अलग की गई नर मंजरियां पोष्टिक चारा होती
है अतः इन्हें पशुओं
को खिलाना चाहिए। ध्यान रखे नर मंजरियां
हटाते समय पौधों से पत्तों को नहीं
हटाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पर विपरीत प्रभाव
पड़ता है जिसके कारण उपज में गिरावट आ सकती है।
सही अवस्था पर करें तुड़ाई
बेबी कॉर्न की तुड़ाई सही समय पर करना आवश्यक होता
है। देर से बुआई करने से भुट्टों की गुड़वत्ता ख़राब हो जाती है। यह फसल खरीफ में लगभग 50-60 दिनों‚ रबी (शीत ऋतू) में 80-100
दिनों‚ तथा जायद (वसंत) में 60 -70
दिनों
में तैयार हो जाता है | शिशु
भुट्टे (गुल्ली) को 2-3 सेमी॰
रेशमी कोपले (सिल्क) आने पर तोड़ लेनी चाहिए। भुट्टा
तोड़ते समय उसके ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए। पत्तियों को हटाने से ये जल्दी खराब हो जाती है। खरीफ़
में प्रतिदिन एवं रबी में एक दिन के अन्तराल पर सिल्क आने के 1-3 दिन के अन्दर भुट्टे की तुड़ाई कर लेनी चाहिए। एकल क्रॉस संकर मक्का में 3-4 तुड़ाई जरूरी होती है। पौधे
के निचले भाग में आई गुल्ली तुड़ाई के लिए पहले तैयार हो जाती है।
उपज एवं रखरखाव
बेबी कॉर्न की उपज बोई गई क़िस्मों की
उत्पादन क्षमता, सस्य
प्रबंधन एवं मौसम पर निर्भर करती है | एक अच्छी फसल से औसतन 50 से
100 क्विंटल/हे. (छिलका सहित बेबी
कॉर्न) या 12-18 क्विंटल/हे. (छिली हुई बेबी कॉर्न) की उपज प्राप्त हो सकती है। इसके अतिरिक्त 150-400 क्विंटल/हे. हरा चारा भी
प्राप्त होता है।
बेबी
कॉर्न तुड़ाई के बाद शिशु भुट्टो से छिलका उतार लेनी चाहिए। यह
कार्य छायादार और हवादार स्थान पर
करना चाहिए। बेबी कॉर्न का भंडारण ठन्डे स्थान पर करना चाहिए। छिलका
उतरे हुए बेबी कॉर्न को कभी भी
ढ़ेर लगा कर नहीं रखना चाहिए, बल्कि
प्लास्टिक की टोकनी ,थैला
या अन्य कन्टेनर में रखना चाहिए। बेबी
कॉर्न को तुरंत मंडी या संसाधन इकाई (प्रोसेसिंग प्लान्ट) में पहुँचा देना चाहिए। मृदा एवं जलवायु के आधार पर किसान भाई एक वर्ष
में बेबी कॉर्न की 3-4 फसलें
आसानी से ले सकते है।
बेबी कॉर्न फसल का आर्थिक
विश्लेषण (प्रति हेक्टर)
माना की बेबी कॉर्न की खेती में लागत मूल्य- रु.25 ,000/-हे.
आता है।
बेबी कॉर्न शिशु भुट्टा की उपज-14 क्विंटल/हे., चारा
उपज-200 क्विंटल/हे.
प्राप्त होती है।
माना की बाजार में शिशु भुट्टा 50 रुपये प्रति किलो और हरा चारा 1.5
रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है तो
कुल प्राप्तियां : 70,000/- बेबी
कॉर्न और 30 000/- हरे
चारे से मिलते है।
शुद्ध लाभ = कुल
प्राप्तियां-लागत मूल्य (100000 -25000=75000 )
इस प्रकार एक फसल से लगभग 75000/- रुपये
प्रति हेक्टर का शुद्ध लाभ संभावित है।
एक साल में बेबी कॉर्न की तीन फसल लेने पर
प्रति हेक्टर लगभग 225 000 रु॰ (दो लाख पच्चीस हज़ार) शुद्ध आमदनी
प्राप्त की जा सकती है। बेबी कॉर्न के साथ लोबिया या ग्वार फली की अन्तः फसली खेती करने से अतिरिक्त आमदनी अर्जित की
जा सकती है।
नोट: इस लेख को बगैर लेखक की अनुमति के अन्य पत्र-पत्रिकाओं में पुनः प्रकाशित न किया जाये। आवश्यक होने पर लेख के साथ लेखक का नाम और पता सहित लेखक का नाम प्रकाशित कर पत्रिका की एक प्रति लेखक को अवश्य प्रेषित करें।
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