सोमवार, 27 मार्च 2017

खरपतवार नियंत्रण से संभव है रबी फसलों से अधिक उत्पादन


डाँ.गजेन्द्र सिंह तोमर 
प्राध्यापक,सस्यविज्ञान
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) 


भारत की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी की रोजी -रोटी और  तमाम ओद्योगिक इकाइयों का परिचालन कृषि पर आधारित है । अतः बढ़ती जनसंख्या के  लिए खाद्य व पोषण  सुरक्षा तथा ओद्योगिक  खुशहाली के  लिए फसल उत्पादन को  सतत बढाना परम आवश्यक है । हमारे देश में खरीफ, रबी और  जायद  मौसमों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए नाना  प्रकार की फसलों  की खेती की जाती है लेनिक उनकी उत्पादकता विकसित देश¨ से काफी कम है । फसलोत्पादन को  प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारकों  यथा वर्षा जल, तापक्रम, आद्रता, प्रकाश आदि के अलावा  जैविक कारकों जैसे  कीट, रोग  व खरपतवार प्रकोप  से फसल उपज का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है । इन सभी फसल नाशकों  में से खरपतवारों  द्वारा  फसल को सर्वाधिक नुकसान होता है । एक आकलन के  अनुसार देश में खरपतवारों  से लगभग 37 हजार करोड़  रूपये की सालाना हांनि हो जाती  है। सही समय पर  खरपतवार नियंत्रित कर लिया जावे तो  हमारे खाद्यान्न के लगभग एक तिहाई हिस्से को  नष्ट होने से बचा कर देश की खाद्यान्न सुरक्षा को  अधिक मजबूत किया जा सकता है । खेत में खरपतवार फसल के  साथ पोषक तत्वों, हवा, पानी और  प्रकाश के  लिए प्रतिस्पर्धा करते है जिससे फसल उपज की मात्रा एवं  गुणवत्ता में गिरावट ह¨ती है । विभिन्न शोध परीक्षणों  से पता चला है कि अनियंत्रित खरपतवार रबी फसलों  की पैदावार में 15-60 प्रतिशत तक की हांनि पहुँचा सकते है । प्रभावशाली ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के  लिए हमें खरपतवारों  का ज्ञान होना अति आवश्यक है । रबी फसलों के साथ  उगने वाले प्रमुख खरपतवारों  को तीन वर्गों  में विभाजित किया गया है :
चौड़ी  पत्ती वाले खरपतवारः बथुआ (चिनोपोडियम  एल्बम), कृष्णनील (एनागेलिस आरवेंसिस), जंगली पालक (रूमेक्स डेन्टाटस), हिरनखुरी(कन्वावुलस  आर्वेंसिस), सफ़ेद  सेंजी (मेलीलोटस  एल्बा), पीली सेंजी (मेलीलोटस  इंडिका) जंगली रिजका (मेडीकाग¨ डेन्टीकुलाटा), अकरा-अकरी (विसिया प्रजाति), जंगली गाजर (फ्यूमेरिया पारविफ़्लोरा), चटरी-मटरी (लेथाइरस अफाका)सत्यानाशी (आरजीमोन  मेक्सिकाना) आदि ।
संकरी पत्ती अथवा घास कुल के  खरपतवारः गेहूंसा या गुल्ली डण्डा (फेलेरिस माइनर), जंगली जई (एवीना फतुआ),दूबघास (साइनोडान  डेक्टीलोन) आदि ।
मोथा  कुल के  खरपतवारः मौथ  (साइप्रस प्रजाति ) आदि । 

खरपतवारों के  हांनिकारक प्रभाव

खरपतवार फसलों  के  साथ उगकर भूमि में उपलब्ध पोषक तत्व तथा प्रयोग  किये गये खाद-उर्वरक का एक तिहाई हिस्सा अकेले  ही ग्रहण कर लेते है । इसके  अलावा मृदा में उपलब्ध नमी को  खरपतवार तेजी से अवशोषित  कर लेते है । इसकी वजह से  फसलों के लिए आवश्यक पोषक  तत्व और  नमीं की कमी आ जाती है जिससे फसल बढ़वार पर बिपरीत प्रभाव जिससे ना केवल  उपज बल्कि  उत्पाद की गुणवत्ता भी घट जाती है । खरपतवार फसल के लिए अपरिहार्य  स्थान तथा  प्रकाश से भी वंचित रखते है । इसके  अतिरिक्त खरपतवार हांनिकारक कीट-रोगों के जीवाणुओं को  भी आश्रय प्रदान करते है । अतः उन्नत किस्म के  बीज, खाद एवं उर्वरकों के  संतुलित उपयोग, समसामयिक सिंचाई, कीट-रोग  प्रबंधन के  अलावा समय पर  खरपतवार नियंत्रण करना भी नितांत आवश्यक है । 

सही समय पर जरूरी है खरपतवारों का  नियंत्रण

रबी फसलों से प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए  इन फसलों की बुआई से लेकर प्रारंभिक 25-30 दिन तक की अवस्था तक खेत को  खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक रहता है।  फसल को  प्रारम्भ से लेकर फसल कटाई तक खरपतवार रहित रखना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं माना जा सकता है । इसलिए फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था  (देखिये सारिणी-1) में खरपतवारों को काबू में रखना अति आवश्यक है, अन्यथा उत्पादन में भारी क्षति होने की सम्भावना रहती है।  
सारिणीः 1  खरपतवारों  द्वारा रबी फसलों  की उपज में हांनि एवं फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय

फसलें 
उपज में संभावित कमीं (%)
फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय
गेंहू 
20&40
30&45
जौ 
10&30
15&45
रबी मक्का 
20&40
30&45
चना 
15&25
30&60
मटर 
20&30
30&45
मसूर 
20&30
30&60
राई-सरसों 
15&40 
15&30 
सूर्यमुखी 
30&45 
33&50 
कुसुम (करडी)
15&45 
35&60 
अलसी 
20&40
30&40 
गन्ना 
20&30
30&120
आलू 
30&60
20&40
गाजर 
70&80
15&20
प्याज व लहसुन 
60&70
30&75
मिर्च व टमाटर 
40&70
30&45
बैंगन 
30&50
20&60

खरपतावार नियंत्रण के प्रमुख  उपाय

खरपतवार प्रबन्धन के अंतर्गत खरपतवारों का निरोधन, उन्मूलन तथा नियंत्रण सम्मिलित होता  है । खरपतवार नियंत्रण की सीमा में  खरपतवारों की वृद्धि रोकना, खरपतवार तथा फसलों के बीच प्रतिस्पर्धा केा घटाना, खरपतवार का बीज बनने से रोकना तथा बीजों तथा अन्य वानस्पतिक भागों का प्रसरण रोकने के  अलावा खरपतवारों का सम्पूर्ण विनाश आता है जो खरपतवार प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य है । खरपतवार प्रबन्धन के  अन्तर्गत निरोधी एवं चिकित्सकीय विधियाँ आती है । चिकित्सकीय विधि के अंतर्गत उन्मूलन तथा नियंत्रण सम्मिलित होता  है । रबी फसलों  में खरपतवार नियंत्रण की  प्रमुख विधियाँ यहां प्रस्तुत है:
1.यांत्रिक विधिः भूपरिष्करण सम्बंधी क्रियाओ जैसे जुताई, खुदाई गुड़ाई आदि से खरपतवार, कटकर, उखड़कर, उलट पलट कर या दब कर समाप्त हो जाते है । कृषि कार्य करने हेतु श्रमिक  कम पारिश्रमिक पर सुगमता से उपलब्ध हो जाने के स्थिति में  रबी  फसलों  में उगने वाले खरपतवारों को फसल की बढवार अर्थात फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था (15 से 35 दिन के  मध्य का समय) में खुरपी, कुदाल या हैण्ड ह¨ से नष्ट किया जा सकता है । खरपतवारों में फूल व बीज बनने से पूर्व उखाड़ा जाना चाहिए ।  फसल बुवाई से पूर्व की जुताई भी खरपतवारों की संख्या को  कम करती है । आज कल मृदा सूर्यीकरण पद्धति  से भी खरपतवार नियंत्रित किये जा रहे है । इस विधि में ग्रीष्म ऋतु में खेतों की गहरी जुताई कर उनमे  सिंचाई करते है । एक-दो  दिन बाद पतली पारदर्शी प्लास्टिक (पोली इथाईलीन) की परत (50 माइक्रोन) खेत में विछाकर 10-20 दिनों के  लिए मिट्टी का तापक्रम बढ़ाया जाता है जिससे खरपतवार बीज और उनके अंकुर  नष्ट हो  जाते है । रबी की प्रमुख फसलों  में निराई गुड़ाई का समय सारणी में दिया गया है। 

सारणी-2 रबी की प्रमुख फसलों में निराई-गुड़ाई का उपयुक्त समय 

क्रमांक 
फसल का नाम 
निराई-गुड़ाई का उपयुक्त समय (दिन में)
1
गेंहू 
30&35
2
चना 
25&35
3
राइ-सरसों 
20&25
4
अलसी 
20&25
5
सूर्यमुखी h
30&45
6
राजमा 
30&35
7
गन्ना 
30&40

2. सस्य विधियाँ: खेत में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कर खेत को 25-35 दिन के लिए खुला छोड़  देने से अधिक तापक्रम के  कारण काफी खरपतवार नष्ट हो  जाते है । फसलों  की बुवाई  छिटकवाँ विधि की वजाय कतार विधि से करने में निराई-गुड़ाई में सुगमता होती है तथा उपज अधिक प्राप्त होती है । इसके  अलावा उपयुक्त फसल चक्र अपनाने से खरपतवार नियंत्रित रहते है, क्योकि  एक ही फसल को उसी खेत में  बार-बार उगाने  से उस फसल के  खरपतवारों  का प्रकोप  बढ़ जाता है । उदाहरण के टॉर  पर गेंहू में जंगली जई या गुल्ली डंडा की समस्या होने  पर गेंहू के  स्थान पर उस खेत में राय-सरसों  या बरसीम उगाना लाभप्रद पाया गया  है । फसलों  की कतारों के  बीच खाली स्थान पर पलवार यथा धान का पुआल या प्लास्टिक की चादरें विछा देने से  भी खरपतवार नहीं पनपते है ।
3.रासायनिक विधियाँ : परंपरागत रूप से खरपतवार नियंत्रण के  लिए निंदाई, गुड़ाई ही कारगर विधि मानी जाती थी । परन्तु प्रतिकूल मौसम  जैसे लगातार वर्षा अथवा मजदूर  न मिलने के  कारण यांत्रिक या सस्यविधियों  से खरपतवार नियंत्रण कठिन होता  जा रहा है । इन विषम  परिस्थितियों  में सीमित लागत तथा कम समय में अधिक क्षेत्रफल में फसल के  इन दुश्मनों  पर नियंत्रण पाने के  लिए रासायनिक विधियाँ कारगर साबित हो रही है । खरपतवारनाशियों के प्रयोग  से खरपतवार उगते ही नष्ट हो  जाते है जिससे उनकी पुर्नवृद्धि, फूल व बीज विकास रूक जाता है । खरपतवारनाशियों  को पमुख तीन वर्गों  में बांटा गया है ।
1.बुवाई से पूर्व प्रयुक्त खरपतवारनाषक (पी.पी.आई.) :  इस प्रकार के  खरपतवारनाषक बुवाई के पूर्व खेत की अंतिम जुताई के  समय छिड़काव कर मृदा में मिला दिये जाते है जिससे खरपतवार उगने से पूर्व ही समाप्त हो जाते है अथवा उगने पर नश्ट हो  जाते है । ये नींदानाषक उड़नषील प्रकृति  के होते  है । अतः छिड़काव के  साथ या तुरन्त पश्चात इन्हें  भूमि में मिलाना आवष्यक रहता है, अन्यथा इनका प्रभाव कम हो जाता है । उदाहरण के  लिए फ्लूक्लोरेलिन, ट्राईफ्लूरेलीन आदि ।
2. अंकुरण पूर्व एवं बुवाई पश्चात प्रयुक्त खरपतवारनाशक(पी.ई.):  इस प्रकार के  नींदानाशक बुवाई के  तुरन्त पश्चात (24-36 घण्टे तक) एवं अंकुरण से पूर्व पप्रयोग  में लाये जाते है । चूंकि ज्यादातर खरपतवार फसल उगने से पहले उग जाते है । अतः ये नींदानाशक उगते हुए खरपतवारों को नष्ट  कर देते है तथा अन्य  खरपतवारों को  उगने से रोकते है । ये  चयनित प्रकार के  खरपतवारनाशक होते है अर्थात फसल को  क्षति नहीं पहुंचाते है । इनका प्रयोग  करते समय भूमि में नमीं रहना अतिआवश्यक है अन्यथा इनकी क्रियाशीलता कम हो  जाती है । उदाहरण के  लिए एट्राजीन, एलाक्लोर, पेन्डीमेथालीन आदि ।
3.अंकुरण पश्चात खड़ी फसल में प्रयुक्त खरपतवारनाशक (पी.ओ .ई.):  इस प्रकार के  नींदानाशक फसल उगने के  पश्चात खड़ी फसल में छिड़के  जाते है । ये  चुनिंदा (वरणात्मक) प्रकार के नींदानाशक  होते है, जो कि खरपतवारों को  विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा नष्ट करते है तथा फसल को नुकसान नहीं पहुँचाते है । अनेक बार अन्य फसलों की बुवाई में व्यस्तता, लगातार वर्षा होने  या अन्य किसी वजह से बुवाई पूर्व (पी.पी.आई.) या अंकुरण पूर्व (पी.ई.) नींदानाशकों  का प्रयोग  नहीं संभव हो सके तो बुवाई पश्चात खड़ी फसल में (पी.अ¨.ई.) खरपतवारनाशकों  का प्रयोग  किया जा सकता है । खड़ी फसल में इनका प्रयोग  करते समय थोड़ी सावधानियाँ रखना आवश्यक रहता है, जैसे विशिष्ट खरपतवारों के  लिए संस्तुत उचित खरपतवारनाशक की सही मात्रा, उचित समय एवं सही विधि द्वारा छिड़काव करना चाहिए अन्यथा फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । खड़ी फसल में इनका प्रयोग  करते समय चिपकने वाला पदार्थ (सर्फेक्टेन्ट) जैसे साबुन, शैम्पू, सैंडोविट  आदि  0,5 प्रतिशत (500 मिली प्रति हैक्टर) को  मिलाकर छिड़काव करने से  ये  पदार्थ  खरपतवारों  की संपूर्ण पत्तियों पर फैलकर  चिपक जाते है एवं उनकी क्रियाशीलता को बढ़ाते है । ध्यान रखे कि स्प्रेयर की टंकी में पहले खरपतवारनाशक मिलाये तथा बाद में सर्फेक्टेन्ट को  डाल कर छिड़काव करें । जैसे 2,4-डी, मेटसल्फूरोन  मिथाइल, सल्फोसल्फुरान, क्यूजालोफ्प  इथाईल, क्लोडिनोफाप  आदि फसल विशेष खरपतवारनाशक है ।
रबी की प्रमुख फसलों  में खरपतवार नियंत्रण

सारणी-3 गेंहू फसल   में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवारनाशी का
वैज्ञानिकनाम
खरपतवारनाशी का
व्यपारिक नाम
प्रयोग दर  (सक्रिय तत्व/व्यापारिक दर प्रति हेक्टेयर)
प्रयोग का  समय
दिन बाद
खरपतवार नियंत्रण हेतु अनुसंशा
मेटस्लफयूरोन मिथाइल
आलग्रिप
4 ग्रा. सक्रिय तत्व (20-30 ग्राम)
बुआई के 35-40
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
पेन्डिमेथालिन 30 र्इ.सी. (स्टाम्प) 
स्टाम्प
750-1000 मिली. सक्रिय तत्व  (2500-3000 मिली.)
बुआई के तुरन्त बाद
चौड़ी पत्ती और सकरी पत्ती वाले खरपतवार ।
मैट्रीब्युजिन
सेंकार, टाटा मैट्री
175-210 ग्रा. सक्रिय तत्व (250-300 ग्रा.)
बुआई के 30-35 दिन बाद
सकरी पत्ती वाले खरपतवार
कारफेट्राजोन 40 डी.एफ.
एफीनिटी
20 ग्रा. सक्रिय तत्व (50 ग्राम)
बुआई के 25-30
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
क्लोडीनोपोप 15 डव्लू पी
टोपिक
60 ग्रा ए.आई /हे
(400 ग्राम/हे)
बुआई के 25-30
सकरी पत्ती वाले खरपतवार
फिनोक्सा प्रोपइथाईल 10 ई.सी
प्यूमासुपर, व्हिप सुपर
80-120 ग्रा सक्रिय तत्व (800-1200  ग्राम/हे )
बुआई के 35-40
सकरी पत्ती वाले.. गेहू और रार्इ के अंतरवर्तीय खेती के लिये उपयुक्त
सल्फोस्लफयूरोन
लीडर, सफल, फतेह
25 ग्रा. सक्रिय तत्व (33 ग्रा..)
बुआई के 25-30
सकरी पत्ती वाले ए वम कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
पीनोक्साडीन  5 या  10 र्इ.सी.
एक्सिल
35-40 ग्राम सक्रिय तत्व (400-800  मिली.)
बुआई के 35-40
सकरी पत्ती वाले खरपतवार
सल्फोसल्फुरोन 75% + मेटासल्फुरोन 5% डब्ल्यू.जी.
 टोटल, टोपेल, बैकेट टिवन
 32 ग्रा./हे सक्रिय तत्व (40 ग्रा /हे )
बोनी के 25-30 दिन बाद
चौड़ी  और संकरी पत्ती वाले
ट्रालकोक्सीडीम 10 ई सी
ग्रास्प
350 ग्रा.ए.आई./हे (3500  मिली/हे )
बोनी के 30 -35  दिन बाद
सकरी पत्ती वाले खरपतवार


नोट-पानी की दर 250 से 300 लीटर प्रति हेक्टेयर रखना चाहिए। 

रबी दलहनों में खरपतवार नियंत्रण 

रबी दलहनों में मुख्य रूप से चना, मटर एवं मसूर की खेती की जाती है। इन फसलों में उगने वाले खरपतवारों को निम्न शाकनाशियो के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। 
  • बुआई से पूर्व फ्लूक्लोरेलिन (बासलिन) 1000  ग्राम सक्रीय तत्व/हे.  की दर से मृदा में मिलाना चाहिए 
  • बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व पेंडीमिथालिन (स्टाम्प)1000-1250 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. की दर से छिकावे किया जा सकता है। 
  • मेट्रिब्यूजिन (सेंकर) 500  ग्राम सक्रिय तत्व/हे. बुआई के तुरंत बाद अथवा बुआई के 15-20 दिन बाद केवल मटर में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जा सकता है। 
  • क़्यूजालोफाप (टरगा सुपर) 50 ग्राम सक्रिय तत्व/हे की दर से बुआई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करें।   

रबी तिलहनों में खरपतवार नियंत्रण 

रबी मौसम में सरसों, तोरिया और अलसी प्रमुख फसलें है। रबी मौसम उगने वाले  चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों में प्याजी, बथुआ, सेनजी, कृष्णनील, हिरनखुरी,सत्यानाशी, अकरी प्रमुख है।  संकरी पत्ती वाले खरपतवारों में गेंहू का मामा, जंगली जई तथा डूब घांस प्रमुख है।  इनके अलावा मोथा का भी प्रकोप बहुतायत में होता है। इन खरपतवारों के  नियंत्रण हेतु अधो लिखित खरपतवारनाशियों में से उपलब्धता के अनुसार 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से सामान रूप से नेपसैक स्प्रेयर के साथ फ़्लैट फैन नोज़ल लगाकर सामान रूप से छिड़काव करना चाहिए। 
  • एलाक्लोर (लासो) 1000-1500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के तुरंत बाद  छिड़ककर मृदा में मिला देना चाहिए। 
  • फ्लूक्लोरेलिन (बासलिन) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के पहले छिड़ककर भूमि में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। 
  • पेंडीमिथालीन (स्टाम्प) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व अथवा क्लोडिनाफाप (टॉपिक) 60 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए। 
  • आइसोप्रोट्यूरॉन (ऐरीलान, धानुलान) 100 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से  बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
  • क़्यूजालोफोप (टरगा सुपर) 40 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से  बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए। 
  • चना + अलसी या चना + सरसों की अंतरवर्ती खेती में खरपतबार नियंत्रण हेतु  पेंडीमिथालीन (स्टाम्प) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद परंतु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
  • गेंहू + सरसों या अलसी + मसूर की  अंतरवर्ती खेती में खरपतबार नियंत्रण हेतु आइसोप्रोट्यूरॉन (स्टाम्प) 1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर  की दर से छिड़काव करना चाहिए। 

गन्ना फसल में खरपतवार नियंत्रण

गन्ना  लगभग पूरे वर्ष भर की फसल है  इसलिए इसके खेत में  रबी, खरीफ और शायद ऋतू के खरपतवारो का प्रकोप होता है। गन्ने में खरपतवारों की समस्या  फसल की रोपाई से लेकर खरीफ ऋतु तक अधिक होती है। गन्ने में खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था बुआई के बाद 40-70 दिन के बीच होती है। गन्ने की पंक्तियों के बीच खली स्थान में गन्ने की सूखी पत्तियों अथवा धान के  पुआल  की 7-12 सेमि. मोटी तह बिछा देने से खरपतवार प्रकोप कम होता है। दो कतारों के मध्य खाली स्थान में कम अवधि और तेजी से बढ़ने वाली फसलों की अंतरवर्ती खेती करने से भी खरपतवार कम पनपते है। गन्ने की फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्न उपाय अपनाये जा सकते है।

  • एट्राजिन (एट्राटॉफ) 2.0 -2.5 किग्रा. सक्रिय तत्व (भारी भूमि) तथा  1.0 -1.5 किग्रा. सक्रिय तत्व (हल्की भूमि) प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु उगने से पहले छिड़कना चाहिए।
  • मेट्रिब्यूजिन (सेंकार) 1.0 -1.5 किग्रा. सक्रिय तत्व प्रति  हेक्टेयर की दर से बुआई के बाद परंतु उगने से पहले छिड़काव करने से संकरी पत्ती वाले खरपतवार कम उगते है।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार और मौथा के नियंत्रण हेतु 2,4-डी  1.5 -2.5 किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु उगने से पहले छिड़कना चाहिए। गन्ने की फसल में अंकुरण के बाद इस रसायन की 1.0 किग्रा प्रति हे. मात्रा प्रयोग करने से चौड़ी  पत्ती वाले खरपतवार जैसे पत्थरचटा, नोनिया, छोटा गोखरू आदि नियंत्रित रहते है।
  • डाईयूरान ( एग्रोमेक्स, कारमेक्स) की 2.5 -3.0  किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु अंकुरण  से पहले प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण में रहते है।
  • पैराक्वाट (ग्रेमोक्सोन)  0.5-1.0  किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से  10-20 % गन्ना उगने पर प्रयोग करने से सभी प्रकार के खरपतवारों पर काबू पाया जा सकता है।
  • घांस कुल के खरपतवारों तथा मोथा  के नियंत्रण हेतु एलाक्लोर 2.0 -3.0  किग्रा. सक्रिय तत्व  प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की बुआई के बाद परंतु  अंकुरण से पूर्व प्रयोग करना चाहिए।

नोट- उपरोक्त खरपतवारनाशियों की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल कर पार्टी हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़कना चाहिए।

शाकनाशी रसायन  के इस्तेमाल में  सावधानियां

  • शाकनाशियों  के डिब्बों पर अंकित निर्देशों  के अनुसार ही खरपतवार नाशियों  का प्रयोग  करें । रसायन को कभी भी देखकर या सूॅंघ कर पहचान न करें क्योंकि  प्रत्येक शाकनाशी रसायन हाँनिकारक पदार्थ होता है ।
  • बुआई से पुर्व या बुआई के तुरंत बाद प्रयोग किये जाने वाले खरपतवार नाशियों को प्रयोग करते समय भूमि में पर्याप्त नमीं होनी चाहिए। 
  • शाकनाशी का प्रयोग तेज हवा रहने पर, अथवा तीव्र धूप के समय भी नहीं करना चाहिए । छिड़काव के समय वायु की दिशा पर भी ध्यान देना चाहिए।
  • छिड़काव करने वाले स्प्रेयर की कार्य क्षमता को छिड़काव से पूर्व चेक कर लेना चाहिए । यदि स्प्रेयर के छिद्र बन्द हों तो उसे मुंह से फूकंकर खोलने का प्रयास नहीं करना चाहिए ।
  • छिड़काव से पूर्व तथा छिड़काव के पश्चात स्प्रेयर को अच्छी प्रकार साफ कर लेना चाहिए तथा जिस स्प्रेयर से शाकनाशी का प्रयोग किया जा रहा है उससे बिना अच्छी प्रकार सफाई किए कीटनाशक या अन्य पदार्थो का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए।
  • शाकनाशी की संस्तुत मात्रा का उचित समय पर  प्रयोग करना चाहिए । संस्तुत मात्रा से कम मात्रा प्रयोग करने से वांछित खरपतवार-नियंत्रण नहीं होता तथा इससे अधिक मात्रा प्रयोग करने से फसलों पर कुप्रभाव पड़ सकता  है जिससे उपज कम होने की सम्भावना रहती है ।
  • फसलों मेें प्रयोग हेतु संस्तुत वरणात्मक शाकनाशी का ही प्रयोग किया जाए । संस्तुति के अतिरिक्त शाकनाशी का प्रयोग हानिकारक हो सकता है ।
  • छिड़काव के समय ध्यान देना चाहिए कि शाकनाशी के घोल का खेत में समान वितरण हो । 
  • छिड़काव कार्य समाप्त होने के पश्चात हाथ, मुँह साबुन से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। 
नोट: यह लेख सर्वाधिकार सुरक्षित है।  अतः बिना लेखक की आज्ञा के इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करना अवैद्य माना जायेगा। यदि प्रकाशित करना ही है तो लेख में लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।

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