शुक्रवार, 4 मार्च 2016

मलेरिया रोधक अदभुत पौधा-आर्टिमिसिया एनुआ

गजेन्द्र सिंह तोमर 
प्राध्यापक सस्य विज्ञानं विभाग 
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)


                   मलेरिया एक विश्वव्यापी घातक रोग है जिससे प्रभावित मनुष्य को बुखार के साथ-साथ कपकपी लिए हुए ठण्ड लगती है। मच्छर से फैलने वाले इस रोग से बहुसंख्यक लोग बीमार पड़ते है। इस रोग से बचने के  लिए क्विनीन नमक दवा उपयोग में लाई जाती है। मलेरिया के परजीवी को मारने में अब इस दवा का प्रभाव कम होता जा रहा है।  बीतें कुछ वर्षों में एक  अदभुत पौधा-किंघाऊँ अर्थात आर्टिमिसिया एनुआ प्रकाश में आया है जिसके अंदर पाये जाने वाले आर्टिमिसिनिन नामक पदार्थ को मलेरिया की दवा बनाने में लाभकारी  पाया गया है। चीन में सर्वप्रथम मलेरिया की दवा बनाने में इस पौधे का प्रयोग किया गया। अब विश्व स्वस्थ्य संघठन ने भी इस पौधे को प्रसारित करने हेतु योजनाएं चलाई है। लखनऊ स्थित केंद्रीय ओषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में बीते कुछ वर्षो से शोध कार्य किये जा रहे है। 
                   आर्टिमिसिया एनुआ  जिसे क्वाघाओ वर्मवुड नाम से भी जाना जाता है।  इसके पौधे दो मीटर तक लंबे, सीधे, मजबूत, रोयेंदार और सुगन्धित होते है। दुनियां भर में इस पौधे की सुखी पत्तियों से मलेरिया रोधी दवा तैयार की जाती है। दुनियां भर में इस दवाई की वार्षिक मांग 130 मीट्रिक टन के आस पास है जिसकी प्रतिपूर्ति चीन और भारत करता है। भारत की दवा कंपनी पहले इस दवा का कच्चा माल (सुखी पत्तियां) चीन से आयात करती  थी ।  केंद्रीय ओषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा  इस पौधे पर शोध कार्य करते हुए इसकी उत्पादन तकनीक विकसित की और खेती के लिए किसानों को शिक्षित प्रशिक्षित किया गया।
फायदे का सौदा है आर्टिमिसिया की खेती       
           भारत में  मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तराखंड आदि राज्यों में इसकी खेती कर किसान खासा  लाभ कमा  रहे है।  भारत, चीन सहित अफ्रीकन देशों में इस दवाई की मांग अधिक है। इसलिए इस फसल की खेती की भविष्य में बेहतर संभावनाएं है। किसानों के लिए इसकी खेती वरदान सिद्ध हो रही है।
आर्टिमिसिया एनुआ की उन्नत किस्में 
             केंद्रीय ओषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा इसकी तीन किस्में (जीवन रक्षा, सिम-अयोग्य और आशा) विकसित की गई है जिनमें से  'सिम-आरोग्य' नामक प्रजाति में सबसे ज्यादा  आर्टिमिसिनिन की मात्रा पाई गई। 
ऐसे करें आर्टिमिसिया एनुआ की सफल खेती  
                आर्टिमिसिया की सफल खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टियाँ उपयुक्त होती है। इसका बीज बहुत छोटा होता है। इसलिए इसकी पौध तैयार कर खेत में पौध रोपण करना अच्छा होता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 150 वर्गफुट भूमि में नर्सरी तैयार करना होता है। चयनित खेत में पहले सड़ी हुई गोबर की खाद समान रूप से बिखेर कर खेत की जुताई करें एवं मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। अब खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में विभाजित कर लें तथा सिंचाई हेतु नालियां बना लेना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 20 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। फफूंदनाशक दवा से बीज उपचार करने के पश्चात बीज को उचित मात्रा में बालू या भूर भुरी गोबर की खाद अथवा राख के साथ मिलाकर क्यरियों में समान रूप से छिड़कना चाहिए।  बीज   बोने के बाद ऊपर से  केंचुआ खाद या फिर  बारीक़ गोबर की खाद छिड़क कर हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। लगभग 50 से 60 दिन में पौध रोपाई हेतु तैयार हो जाती है। 
ध्यान से करें पौध रोपण 
            मुख्य खेत जिसमे पौध रोपण करना है, की भली भांति गहरी जुताई कर उसमे पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए। अंतिम जुताई के पूर्व अच्छी प्रकार से सड़ी हुई गोबर की खाद (5-6 टन प्रति हेक्टेयर) खेत में मिला देना चाहिए। आर्टिमिसिया की  पौध 50-60 दिन की होने पर उसे खेत में कतार से कतार 50 सेमी तथा पौध से पौध 30 सेमी की दूरी पर रोपन कर हल्की सिंचाई कर देना  चाहिए। उत्तम पैदावार लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद एवं उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जोकि भूमि के प्रकार पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर 150 किग्रा नत्रजन,   50 किग्रा फॉस्फोरस एवं 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना उचित रहता है। उक्त नत्रजन की आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय छिडकें  अथवा रोपाई के समय कतार में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को 2-3 बार में सिंचाई के साथ देना चाहिए। 
समय पर सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण 
           पौध रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई की जाती है। इसके बाद मौसम एवं मृदा प्रकार के आधार पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। दीमक प्रभावित क्षेत्रों में फसल सुरक्षा के लिए क्लोरोपाइरीफॉस दवा 1-1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिचाई के समय प्रयोग करना चाहिए।   खरपतवार मुक्त फसल  रखने के लिए एक माह बाद खेत में   1-2 निराई-गुड़ाई खुरपी या हैंड हो की सहायता से करना आवश्यक है।
शुष्क मौसम में करें पौध कटाई
          आर्टिमिसिया की पत्तियां ही आर्थिक महत्त्व की होती है। इसकी कटाई के समय मौसम शुष्क एवं बादल रहित होना चाहिए। उत्तर भारत में पहली कटाई मई के अंत में (बोने के 95-100 दिन बाद), दूसरी कटाई जुलाई अंत से अगस्त के प्रथम सप्ताह (बोने के 145-150 दिन बाद) तथा तीसरी कटाई सितम्बर के मध्य में (बुवाई के 190-200 दिन बाद) करना चाहिए। पौधों की कटाई दांतेदार तेज धार वाले हँसिया से भूमि की सतह से 30 सेमी  की ऊंचाई से ही (नीचे से एक फुट छोड़कर) करना चाहिए। 
आर्थिक उपज 
           आर्टिमिसिया फसल की तीन कटाइयों में 450-475 क्विंटल ताज़ी हरी पत्तियां प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, जिसे छाया में सुखाने पर 40-50 क्विंटल सूखी पत्ती प्राप्त हो जाती है।  उपज पूर्णतः मौसम एवं उत्पादन तकनीक पर निर्भर करती है।  इसके पौधों को खेत से काटकर साफ़ एवं शुष्क स्थान पर छाया में अच्छी प्रकार सुखाकर पत्तियों को डंठल से अलग कर लेते है। इसके बाद इन्हे पुनः सुखाकर जूट के बोरों में भरकर विक्रय हेतु भेज देना चाहिए।मध्य प्रदेश के रतलाम स्थित इप्का लेबोरेटरी  बड़ी तायदाद में इस दवाई का निर्माण किया जा रहा है।   आर्टिमिसिया पौधों की एक टन सुखी पत्तियों से चार किलो दवाई बनाई जाती है।
ध्यान रखें : इसकी खेती करने से पूर्व उपज के खरीददारों से सम्पर्क अथवा किसी दवा निर्माता कंपनी के साथ अनुबंध  आवश्य कर लेना चाहिए, जिससे उपज बेचने में कठिनाई ना हो।  इप्का दवा निर्माता  कंपनी  फसल की उत्पादन तकनीक पर  किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ उन्नत किस्म के बीज भी उपलब्ध करा रही है। 



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