गुरुवार, 3 मार्च 2016

रोजगार प्रदाता बनें-कृषि क्षेत्र में है स्वरोजगार की असीम सम्भावनाये


डाँ. गजेन्द्र सिंह  तोमर  
प्राध्यापक (सस्यविज्ञान)
कृषि महाविद्यालय, इं.गां.कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

                     हमारे देश में अधिकांश लोगो की मानसिकता नौकरी करने की होती है तथा व्यापार की तरफ बहुत काम लोगो का रुझान देखने को मिलता है। जब से वच्चा पैदा होता है उसके माँ-बाप उससे पूछने लगते है 'अलेले मेरा वच्चा बड़ा होकर क्या बनेगा-कलेक्टर,इंजीनियर,डॉक्टर या बड़ा अधिकारी' और इसी की घुट्टी उसे पिलाई  जाती है।  उसके दिलों-दिमाग में इस नुस्खे को कूट-कूट कर भर दिया जाता है। व्यापारी या उद्यमी बनने की बात शायद ही कोई माँ-बाप अपने बच्चे को बताता होगा। यही वजह है की बहुतेरे बच्चे कलेक्टर, इंजीनयर, डॉक्टर बनने के फेर में अपना सब कुछ दांव पर लगा देते है और कुछ ही को सफलता मिलती है। शेष बेरोजगारी का दंश झेलते रहते है। रोबर्ट क्योस्की के अनुसार विश्व में 5 % लोग व्यापार अथवा पूँजी निवेश के क्षेत्र में कार्य करते है जो विश्व की 95 % दौलत के मालिक है तथा शान-शौकत का जीवन व्यतीत कर रहे है । विश्व के 95 % लोग सेवा क्षेत्र को चुनकर नौकरी करते है जिनके पास विश्व की सिर्फ 5 % दौलत है और ले दे कर जीवन की नाव को घसीट रहे है।  अब मर्जी आपकी है कि  आप अपने बेटें-बेटियों को किसी उद्यम/व्यापार के लिए प्रेरित कर उसे मालिक बनाना चाहते है या फिर उसे नौकरी के लिए विवस कर नौकर बनाना चाहते है। जहाँ निजी क्षेत्र में वेतन बहुत कम है वहीं उच्चतर वे पेशवर शिक्षा महंगी होती जा रही है। रोजगर प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। छात्रों में योग्यता व रोजगार के लिए बढ़ती हुई होड़ से परेशान व हताश हैं। उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं चूंकि स्वरोजगार के रूप में अभी भी एक विकल्प उन उत्साही, संघर्षशील व परिश्रमी युवाओं के लिए खुला है जिनकी या तो नौकरी में रुचि नहीं है या इस प्रतियोगी युग ने अपने लिए बढिय़ा-सा रोजगार हासिल करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करते हैं। इसमें आपको नौकरी की तलाश में दर-दर भटकना भी नहीं पड़ेगा बल्कि आप अपने स्वयं मालिक होंगे। समय की भी मांग है कि युवा वर्ग को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया जाए इसमें न केवल उनका अपितु देश का हित भी जुड़ा हुआ है।
सोहरत और दौलत के लिए कृषि उद्यमी बनें
                सोहरत और दौलत हासिल करने के लिए आपको अपनी सोच बदलनी होगी। अपने बच्चों को बेहतर तालीम के साथ-साथ व्यवसाय में सुनहरे भविष्य की उज्जवल तस्वीर उनके मन मस्तिष्क में बैठाना होगी। उद्यम अथवा व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में असीम सम्भावनाये है और हमेशा बनी रहेंगी।आर्थिक उदारीकरण, विश्व व्यापारीकरण और भौतिकवादी संस्कृति मानव की जीवन शैली और खान-पान को एक नै दिशा प्रदान की है। अब लोगों का विशेष कर नौजवानों का नित नई वस्तुओं के प्रति बढ़ता मोह व रुझान ने स्वरोजगार के लिए नए द्वार खोल दिए है।  तेजी से बदलते विश्व परिदृश्य व परिवेश का फायदा उठाते हुए  कृषि आधारित तमाम उद्यम प्रारंभ किये जा सकते है । भारत एक कृषि प्रधान देश है।  देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी भूमिका कृषि निभाती है।  देश की करीब अस्सी फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है।  भारत के विभिन्न राज्यों के जलवायु और  ज़मीन में जितनी विविधता है उसी वजह से फसलों में भी उतनी ही विविधता है।  कृषि में स्वरोजगार शुरू करने पर आप न केवल स्वयं को बल्कि अन्य बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार का अवसर मुहैया करवाएंगे। इस कार्य से आप समाज के प्रति अपने दायित्वों का ही निर्वाह कर सकते हैं।  स्वरोजगार स्थापना हेतु  केंद्र एवं विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा बहुत सी महत्वाकांक्षी योजनायें एवं कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम  संचालित किये  जा रहे है । ग्रामीण युवाओं और बेरोजगार नौजवानों स्किल इंडिया के तहत  स्व-रोजगार स्थापित  करने के लिए उद्यमिता प्रशिक्षण भी दिये जा रहे है तथा उद्यम स्थापित करने के लिए बैंकों  से आसानी में कम ब्याज दर पर ऋण सुविधा भी उपलब्ध है । यदि गौर किया जाए तो कृषि में  स्वरोजगार स्थापित करने  का क्षेत्र इतना व्यापक है कि आकाश भी छोटा पड़ जाए। कृषि क्षेत्र में स्वरोजगार स्थापित करने के  विभिन्न आयाम यहां प्रस्तुत है ।
1. बागवानी और संबद्ध क्षेत्र
                         बागवानी में रोजगार के अपार अवसर है, विशेषकर बेरोजगार युवाओं और महिलाओं के लिए स्वरोजगार सृजन की बागवानी में व्यापक संभावनाएं है। बहुत सी कृषि जिंसों  के उत्पादन में भारत विश्व का नेतृत्व करते आ रहा है जैसे आम, केला,  नींबू, नारियल, काजू, अदरक, हल्दी और काली मिर्च। वर्तमान में यह विश्व में फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।भारत का सब्जी उत्पादन चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और फूलगोभी, के उत्पादन में पहला स्थान है प्याज में दूसरा और बंदगोभी में तीसरा स्थान है।  इसके अतिरिक्त हमारा देश मसालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता, उत्पादक और निर्यातक है।  भारत के सभी प्रदेशों में सब्जियों  व मसालेदार फसलों जैसे आलू, अरबी,शकरकंद, जिमीकंद, भिण्डी, गोभी, सेम,  मटर, टमाटर, बैगन, मिर्ची, हल्दी, धनियां अदरक, लहसुन, मैथी, पालक  आदि की खेती  की अपार संभावनाएं विधमान  है। इनकी खेती आर्थिक रूप से लाभदायक भी है । टमाटर, आलू , मटर तथा मसालेदार फसलों के प्रसंस्करण एवं विपणन के क्षेत्र  में उद्यम स्थापित किये जा सकते है ।  छत्तीसगढ़ में उगाए जाने वाले प्रमुख फल आम, केला,  अमरुद, बेर, पपीता, शरीफा आदि हैं।  हमारे किसान घर की बाड़ी में इन्हे परंपरागत रूप से लगाते भी है । यदि योजनाबद्ध तरीके से इनकी खेती की जाय तो  छोटे-मझोले  किसान अतिरिक्त  आमदनी प्राप्त कर सकते है ।  सहजन(मुनगा) की खेती  स्वास्थ्य और  आर्थिक रूप से भी लाभदायक है । फल, फूल एवं सब्जी की खेती को  बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार विभिन्न राज्यों  में हार्टीकल्चर मिशन चला रही है । इसके तहत किसानों को  आर्थिक मदद दी जा रही है ।
2. पुष्प कृषि
                 वाणिज्यिक पुष्प कृषि हाल में ही शुरू हुई है, यद्यपि पुष्पों की पारंपरिक खेती भारत में सदियों से हो रही है।   भारत में सदियों से फूल कृषि की जा रही है किन्तु  वर्तमान में फूल कृषि एक व्यवसाय  के रूप में की जाने लगी है क्योंकि भगवान की पूजा हो, विवाह हो, त्यौहार हो या किसी का स्वागत सम्मान हो  अथवा किसी को श्रदांजली अर्पित करनी हो फूलों के बिना संपन्न नहीं हो सकती है । समकालिक कटे फूलों जैसे गुलाब, ग्लेडियोलस, टयूबरोस, कार्नेशन इत्यादि का वर्धित उत्पादन पुष्प गुच्छ तथा साथ ही घर तथा कार्यस्थल के अलंकरण हेतु इनकी मांग में निरंतर वृद्धि हो  रही है। फूलों से आप गुलदस्ता, कट फ्लावर, माला. स्टेज सज्जा,बुके आदि बना कर बाजार में बेच सकते है। अनेक फूलों जैसे गुलाब, चमेली, मोंगरा आदि से इत्र/फ्रेश्नर तैयार किये जाते है। फूलों के राजा गुलाब का तो कहना ही क्या है। इसका फूल किसी का भी मन मोह लेता है। वेलेंटाइन डे के समय तो गुलाब का एक पुष्प 15-20 रुपये में बिकता है। गुलाब के फूलों से तो गुलकंद और गुलाब जल भी बनाया जाता है।   इस प्रकार   रोजगार सृजन के लिए पुषपीय पौधों  की खेती एक  महत्वपूर्ण उद्यम बन सकता है जिसमें पैसे के साथ-साथ फूलों की खुशबु  और अपार खुशियां भी आपको  मिल सकती है। 
3. औषधीय एवं सुगंधित पादप खेती  एवं प्रसंस्करण
              भारत को मूल्यवान औषधीय और सुरभित पादप किस्मों का भंडार माना जाता हैं। भारत में 15 कृषि-जलवायवी क्षेत्रों में अमूमन  47000 भिन्न-भिन्न पादप जातियां पाई जाती हैं, जिनमे से  15000 औषधीय एवं सगंध पौधे हैं। लगभग 2000 देशज पादप जातियों में रोगनाशक गुण हैं और 1300 जातियों अपनी सुगंध तथा सुवास के लिए प्रसिद्ध हैं। चिकित्सा की भारतीय प्रणालियों अर्थात. आयुर्वेद, यूनानी तथा सिद्ध औषधियों की देश-विदेश में बहुत मांग हैं। बहुमूल्य दवाइयां बनाने में प्रयुक्त 80 प्रतिशत कच्ची सामग्री  औषधीय पौधों से प्राप्त होती  हैं। हमारे प्रदेश में उगाये जाने वालें प्रमुख औषधीय पौधों  में आंवला, चिरायता, कालमेघ, सफेद मूसली, दारूहल्दी, सर्पगंधा, अश्वगंधा, गिलोय, सेन्ना, अतीस, गुडमार कुटकी, शतावरी, बेल गुग्गल, तुलसी, ईसबगोल, मुलेठी, वैविडंग, ब्राह्मी, जटामांसी, पथरचूर कोलियस, कलीहारी, आदि प्राकृतिक रूप से उगते है जिनके कृषिकरण, प्रसंस्करण एवं विपणन में ग्रामीण युवायों  के लिए रो गार के पर्याप्त अवसर विद्यमान है । सगंध फसलों  में पामारोशा, नींबू घास, सिट्रोनेला, मेंथा आदि की उद्योग  जगत में भारी मांग है ।
4. पशु पालन और डेयरी
                    पशु पालन और डेयरी विकास क्षेत्र भारत के सामाजिक आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। पशुपालन सदैव से ही मानव संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है । सुरक्षा, शौक, परिवहन एवं  आजीविका के लिए तथा अपनी पोषण सम्बन्धी जरूरतों  की पूर्ति सहित अनेक अन्य कार्यों  के लिए हम अपने इन वफादार सहचरों  पर आज भी आश्रित है । विश्व के अनेक देशों  की भांति हमारे यहां भी गौवंशीय पशु पालन, बकरी, भेड़, कुक्कुट, अश्व, ऊंट, बतख, खरगोश आदि के पालन पोषण से  छोटी-बड़ी आय अर्जन  गतिविधियों  के रूप में प्रचलित है ।संसार में भैंसों के संदर्भ में भारत का पहला स्थान है, पशुओं तथा बकरियों में दूसरा, भेड़ों में तीसरा, बत्तखों में चैथा, मुर्गियों में पांचवां और ऊंटों की संख्या में छटा। पशुधन क्षेत्र न केवल दूध, अंडों, मांस आदि के रूप में आवश्यक प्रोटीन तथा पोषक मानव आहार उपलब्ध कराता है, साथ ही  पशुधन कच्ची सामग्री के उपोत्पाद यथा खाल तथा चमड़ा, रक्त, अस्थि, वसा आदि उपलब्ध कराता है। दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र  में भारत का योगदान निर्विवादित रूप से सर्वश्रेष्ठ है । हमारे देश में सालाना 820 लाख टन से भी अधिक दुग्ध उत्पादित होता है जो  विश्व स्तर पर मात्रा  की दृष्टि से सर्वाधिक है । इसके अलावा सहकारी, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों  में 275 से अधिक सयन्त्रों, लगभग 83 दुग्ध उत्पाद कारखानों  एवं असंख्य लघु स्तर के दुग्ध उत्पादको  के योगदान से हमारे देश का दुग्ध उद्योग  विश्व पटल पर तेजी से उदीयमान हो  रहा है ।
 जनसँख्या वृद्धि को ध्यान  रखते हुए देश में पशुपालन व्यवसाय को विकसित करने  की असीम संभावनाएं है । किसानों  द्वारा वर्तमान में पाली जा रही गाय व भैस की नस्लों  की उत्पादन क्षमता बहुत कम है । नस्ल सुधार तथा उत्तम नस्ल की गाय-भैस पालने से ग्रामीण अंचल की अर्थव्यवस्था को  काफी हद तक सुधारने की संभावना है । दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसकी मांग निरन्तर बनी रहती है । इस  डेरी उद्योग को  बढ़ावा देने से हमारे नौजवानों  एवं ग्रामीण  महिलाओं को  वर्ष पर्यन्त रोजगार प्राप्त होगा साथ ही पशुओं  से प्राप्त गोबर बहुमूल्य जैविक खाद के रूप में प्रयोग करने से हमारी भूमियों  की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी जिससे  फसल उत्पादन में भी सतत बढ़ोत्तरी होगी ।  पशुपालन में दाना-खली का महत्वपूर्ण योगदान होता है । इनके निर्माण की इकाइयाँ स्थापित की जा सकती है । लाखों लोगों के लिए सस्ता पोषक आहार उपलब्ध कराने के अतिरिक्त, यह ग्रामीण क्षेत्र में लाभकारी रोजगार पैदा करने में मदद करता है, विशेष रूप से भूमिहीन मजदूरों, छोटे तथा सीमांत किसानों तथा महिलाओं के लिए और इस प्रकार उनके परिवार की आय बढ़ाता है। सूखा, अकाल तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसी प्रकृतिकी विभीषिकाओं के प्रति पशुधन सर्वोत्तम बीमा हैं। भारत के पास पशुधन तथा कुक्कुट के विशाल संसाधन हैं जो ग्रामीण लोगों की सामाजिक आर्थिक दशाएं सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
5. मत्स्य पालन
                      भारत संसार में मत्स्य का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और स्वच्छ जल के मत्स्य का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक।  अपनी लंबी तट रेखा, विशाल जलाशयों आदि के कारण भारत के पास अंतर्देशीय तथा समुद्री दोनों संसाधनों से मत्स्य के लिए व्यापक संभावनाएं हैं।  मत्स्य क्षेत्र को एक शाक्तिशाली आय एवं रोजगार जनक माना जाता है। मछली पालन सेक्टर ने देश में करीब 1.5 करोड़ लोगों को रोज़गार दे रखा है. यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सस्ते तथा पोषक आहार का स्रोत हैं।
6. बकरी पालन 
        बकरी को गरीब और छोटे किसानों की गाय भी माना जाता है।  देश के ग्रामीण क्षेत्रों  में बकरी पालन पारम्परिक रूप से एक बड़ा व्यवसाय रहा है। आजकल  नॉन वेज खाने वालों में बकरे के मांस की मांग भी खूब है।  ईद के समय बकरे की बहुत मांग रहती है तथा कई जगह बकरों की बलि का धार्मिक रिवाज भी है. ऐसे में बकरियों की प्रजनन क्षमता साल भर में विकसित हो जाती है। एक बार में दो बच्चों को जन्म देना बकरियों में आम है। मामूली निवेश और कम जगह में  बकरी पालन गाँवों के नौजवानों  के लिए एक फायदे का पेशा हो सकता  है।  आजकल बकरी के दूध की मांग भी बढ़ रही है। 
7 . जैविक  खेती 
               जैविक कृषि आज कृषि व्यवसाय का नया मंत्र बन रहा है। रसायन रहित भोजन की चाहत बढ़ने से किसानों खासकर छोटे उत्पादकों के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खुल रहे हैं। जिससे वे कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों पर होने वाले  खर्च बचाकर शुद्ध खाद्य वस्तुएं उगाकर अच्छा मूल्य पा सकते हैं।  लोगों में बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के चलते पूरे विश्व में आर्गेनिक खाद्य पदार्थों  की मांग तेजी से बढ़ी है। इस क्षेत्र में भी रोजगार की बेहतर सम्भनायें है।  
8 .  कृषि  प्रसंस्करण एवं मूल्य सम्वर्धन उद्योग 
                कृषि  प्रसंस्करण विविधताओं भरा उद्योग है जिसमें कृषि, बागवानी एवं  वानिकी उत्पादों के अलावा  डेयरी, बकरी पालन, भेड़ पालन, पोल्ट्री, मछली आदि से उत्पन्न कच्चे माल का प्रंसस्करण, पैकिंग और विपणन  किया जा सकता है ।
(i) खाद्य प्रसंस्करण : खाद्य प्रसंस्करण में खाद्यान्न, दलहन एवं तिलहन उद्योग स्थापित किये जा सकते है। खाद्यान्न फसलों जैसे गेंहू से दलिया, आटा, मैदा, सीमई, नूडल्स   आदि निर्मित करने की इकाई प्राऱम्भ की जा सकती है। जई और जौ के दलिया/ओट्स  की आज बाजार में अधिक मांग है क्योकि इनमें रेशे की अधिक मात्रा होने के कारण मधुमेह  रोगियों के लिए पौष्टिक एवं लाभदायक होता है। इसी प्रकार चावल से विभिन्न उत्पाद यथा मुरमुरे, खील,पोहा आदि तैयार किये जा सकते है। मक्का की विभिन्न किस्में जैसे स्वीट कॉर्न से सूप व स्नेक्स, पॉपकॉर्न, बेबी कॉर्न, मक्का से कॉर्न फ्लेक्स, दलिया, आटा तैयार करने की इकाई शुरू की जा सकती है। दलहनों से दाल, बेशन तथा तिलहनों से तेल निर्माण की विविध इकाईया स्थापित कर स्वरोजगार प्राप्त किया जा सकता है।  इन खाद्यान्नों के प्रसंस्करण पाश्चात उत्पन्न चोकर, चुन्नी, खाली आदि को पशु आहार के रूप में बेचकर अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।
(ii) फल एवं सब्जी प्रसंस्करण उद्योग : सौभाग्य से हमारे देश में जलवायु  और मिट्टियों की जितनी विविधितता है वो अन्य किसी देश में शायद ही हो और इसलिए हमारे देश में नाना प्रकार के फल एवं सब्जियां वर्ष पर्यन्त उगाई जा रही है। विश्व में चीन के बाद भारत सबसे बड़ा फल और सब्जी उत्पादक देश है। फल एवं सब्जिओं में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण ये शीघ्र ख़राब होने लगती है। एक अनुमान के अनुसार कुल फल और सब्जी उत्पादन का 30-40 प्रतिशत हिस्सा इनकी तुड़ाई पश्चात कुप्रबंधन की वजह से क्षतिग्रस्त हो जाता है।  मौसमी फलों में आम, अमरुद,अनार,केला, बेर,पपीता आदि तथा सब्जिओं में टमाटर, आलू,मिर्च, गाजर आदि   बहुतायत में पैदा किये जाते है। बागवानों के लिए इन फलों  एवं सब्जिओं से अधिक मुनाफा प्राप्त करने का विकल्प हमेशा खुला रहता है। फलों एवं सब्जिओं का प्रसंस्करण करके किसान और बागवान कई तरह के उत्पाद बनाकर बाजार में बेच सकते है। इससे इन्हे खासा मुनाफा प्राप्त हो सकता है। टमाटर से लेकर मिर्च तक और आम से लेकर आवलां का जेम, जेली,अचार, मुरब्बा आदि तैयार किये जा सकता है। किसान और युवा अपना उद्यम भी इन क्षेत्रों में स्थापित कर सकते है।
7. रेशम कीट  एवं मधुमक्खी पालन
                  रेशम, जो अद्वितीय शान वाला एक प्राकृतिक रूप से उत्पादित रेशा है । छत्तीसगढ़ में टस्सर रेशम व सहतूत रेशम का उत्पादन करने की अच्छी संभावनाएं है। टस्सर रेशम का प्रयोग मुख्यतः फर्निशिंग्स तथा इंटीरियर के लिए किया जाता है। यह लगभग 6 मिलियन लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है जिनमें से अधिकांश लघु तथा सीमांत किसान अथवा अति लघु तथा घरेलू उद्योग हैं जो मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। रेशम उद्योग  में निम्न  निवेश से अधिक आमदनी प्राप्त ह¨ती है । पूरे वर्ष परिवार के सभी सदस्यों को रोजगार प्राप्त होता है वस्तुतः यह महिलाओं का व्यवसाय है तथा महिलाओं के लिए है क्योंकि महिलाएं कार्यबल के 60 प्रतिशत से अधिक का रेशम  निर्माण करती है। तथा 80 प्रतिशत रेशम की खपत महिलाएं करती हैं। रेशम-उद्योग में शामिल कार्य जैसे पत्तों की कटाई, सिल्कवॉर्म का पालन, रेशम के धागे की स्पिनिंग अथवा रीलिंग तथा बुनाई का कार्य महिलाएं करती है। यह एक उच्च आय सृजन उद्योग है जिसे देश के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है । मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ दोनों  राज्यों  में मधुमक्खी पालन की अपार संभावनाएं है । प्राकृतिक रूप से भी हमारे वनों  में भी मधुमक्खियों  द्वारा उत्पादित शहद का संकलन एवं प्रसंस्करण किया जाता है ।
8 . लघु वनोपज आधारित स्वरोजगार
         भारत के अनेक राज्यों में लघु वनोपजों की पर्याप्तता एवं उसके उपयोगों को ध्यान में रखते हुए स्वरोजगार के लिए यह अत्यंत ही लाभदायक क्षेत्र हो सकता है   इस क्षेत्र में मुख्य रूप से करंज, सवाई घास, गोंद राल, महुवा फूल, आम,इमली, चिर्रोंजी, लाख,  हर्रा, साल बीज, कुशुम, तेंदू पत्ता, पलास, ओषधि एवं सगंध पौधों का संकलन इत्यादि है। इन उपलब्ध वनोपजों से निर्मित उत्पादों के प्रसंस्करण एवं विक्रय  अधिक लाभदायक होता है।
9 .  बेरोजगार कृषि स्नातकों के लिए प्रशिक्षण  
               बेरोजगार कृषि स्नातकों को  कृषि क्षेत्र  में उद्यम प्रारंभ करने के लिए प्रशिक्षत करने के लिए  भारत सरकार द्वारा 'कृषि चिकित्सालय एवं कृष व्यवसाय केंद्र' नामक महत्वाकांक्षी योजना देश के सभी राज्यों में संचालित की जा रही  है ।  किसानों को खेती, फसलों के प्रकार, तकनीकी प्रसार, कीड़ों और बीमारियों से फसलों की सुरक्षा, बाजार की स्थिति, बाजार में फसलों की कीमत और पशुओं के स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर विशेषज्ञ सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कृषि क्लीनिक की परिकल्पना की गयी है, जिससे फसलों या पशुओं की उत्पादकता बढ़ सके। कृषि व्यापार केंद्र की परिकल्पना आवश्यक सामग्री की आपूर्ति, किराये पर कृषिउपकरणों और अन्य सेवाओं की आपूर्ति के लिए की गयी है।
इनके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में मशरूम की खेती, बकरी पालन, खरगोश पालन,बटेर पालन, बत्तख पालन के अलावा कृषि उपकरण निर्माण एवं मरम्मत के क्षेत्र  में भी उद्यम स्थापित करने की भी अपार संभावनाएं है ।

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