मंगलवार, 22 मार्च 2016

जीवनाशी रसायन: मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के दुश्मन

डॉ जी. एस. तोमर 
प्रोफेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) 
                सघन खेती के अंतर्गत विस्तारित खाद्यान्न फसलों, दलहन, तिलहन, गन्ना, फल और सब्जिओं से उपज में आशातीत वृद्धि हुई है, परन्तु इन फसलों को प्रभावित करने  वाले विभिन्न कीट, रोग खरपतवारों के नियंत्रण के लिए जीवनाशी रसायनों जैसे कीटनाशियों, फफूंदनाशियों  और खरपतवारनाशियों का प्रयोग अपरिहार्य हो गया है। इन जहरीले जीवनाशियों के अन्धाधुंध और बेरोकटोक प्रयोग से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ रहा है। दरअसल विभिन्न कीट-व्याधियों के नियंत्रण हेतु फसलों में प्रयुक्त पीडकनासी रसायनिकों का काफी अंश  खाद्य पदार्थों (खाद्यान्न, फल, फूल और सब्जी) में रह जाता है जो भोजन के माध्यम  से मानव शरीर में पहुँचकर बसा कोशिकाओं में जमा हो जाते है, जिसके परिणामस्वरूप हेपेटाइटिस, कैंसर, मिर्गी,लकवा जैसी जानलेवा बीमारियां पनपने लगती है। इन बीमारियों के अलावा अंधता, दमा,अतिसार,आन्तसोथ, स्तन कैंसर, रुधिर में स्वेत रक्त कड़िकाओं की कमी, शरीर में खून की कमी, चेहरे में काले धब्बे आदि रोग मनुष्य में परिलक्षित हो रहे है। इन रसायनिको के अंधाधुन्ध इस्तेमाल से पारिस्थिकीय संतुलन भी गड़बड़ा रहा है, जिसमें  कीट और रोगों में  पीड़कनाशियो के प्रति अधिक प्रतिरोधिता, पर्यावरण और  श्रृंखला का प्रदूषण तथा खेतों में पाये जाने वाले प्राकृतिक मित्र पछियों और कीटों का विनाश भी शामिल है। विश्व बैंक द्वारा किये गए अध्यन के अनुसार दुनिया में 25 लाख लोग प्रतिवर्ष कीटनाशकों के दुष्प्रभावों  के शिकार होते है, उसमे से 5 लाख लोग तक़रीबन काल के गाल में समा जाते है । अमेरिका में हुए अनुसन्धान के परिणामों से ज्ञात होता है कि जब कीटनाशी रसायनों का पेड़-पौधों, सब्जियों और फलों पर छिड़काव किया जाता है तो इन रसायनों का 1 % मात्रा ही सही लक्ष्य तक प्रभावी हो पाती है , शेष 99 % रसायन पर्यावरण को प्रदूषित करता है। कीटनाशकों का एक बड़ा भाग पेड़-पौधों, सब्जियों एवं फलों पर ही रह जाता है जो की घुलने के पश्चात भी साफ़ नहीं हो पाटा है। भोजन और फलों के साथ यह जहरीला रसायन मनुष्यो और पशुओं के शरीर  में प्रवेश कर जाता है। अध्ययनों से पता चला है की अधिकतर कीटनाशी हमारे शरीर में सब्जियों के माध्यम से पहुँचते है, क्योंकि अन्य फसलों की अपेक्षा सब्जी वर्गीय फसलों में रासायनिक कीटनाशकों का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। सब्जियों को कीटनाशकों से उपचारित करने के पश्चात बिना निश्चित अंतराल पर ध्यान दिए  हुए बिक्री हेतु बाजार में भेज दिया जाता है। आज के समय में बाजार में उपलब्ध फूलगोभी, पत्तागोभी,बैगन, टमाटर, भिन्डी, परवल, पालक, शिमला मिर्च, लौकी, तोरई,टिंडा,पट्टीदार हरा प्याज आदि सब्जियां अत्यंत खतरनाक कीटनाशियों के अवशेषों से युक्त  होती है।   आजकल मुनाफे के फेर में अनेक व्यापारी और दुकानदार भी हमारी खाद्य श्रृंखला को दूषित और जहरीला बनाने में अहम भूमिका निभा रहे है। छदम और बेईमान व्यापारी हरी सब्जियों का बाजार में भेजने से पूर्व उन्हें बनावटी रंग दे देते है जिससे उन्हें बेहतर दाम मिल सकें। बाजार में उपलब्ध सभी प्रकार की दालों और चावल को पोलिश करने के नाम पर कृत्रिम रसायनों का रंग दिया जाता है जिससे वे अधिक चमकीली हो जाती है। सुगन्धित चावल के नाम पर कृत्रिम रूप से सुगन्धित बासमती, दुबराज, बादशाह भोग आदि चावल महंगे दाम पर बेच कर उपभोक्ताओं को ठगा ही नहीं जा रहा है वल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
            कीटनाशकों के अलावा अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों का भी धड़ल्ले से अंधाधुन्ध प्रयोग किया जा रहा है। हालत यहाँ तक हो गए है की बिना इन उर्वरकों के उपयोग से फसलोत्पादन संभव नहीं हो रहा है और कही कही तो उर्वरकों के भरपूर प्रयोग के वावजूद भी उपज में यथोचित बढ़ोत्तरी नही हो पा रही है। देश की उर्वरा भूमियाँ गैर उपजाऊँ होती जा रही है, साथ ही जल और वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। अनेक स्थानों पर उर्वरकों के प्रयोग के कारण  भूमिगत जल 25 से 30 मीटर की गहराई तक प्रदूषित हो गया है। सरकार को चाहिए की स्वस्थ्य के लिए खतरनाक कीटनाशकों एवं अन्य रसायनिकों के विक्रय और अंधाधुन्ध इस्तेमाल पर तत्काल  प्रभाव से रोक लगाये।  इसके अलावा उपभोक्ताओं को भी खाद्यान्न, फल और सब्जियां  विश्वशनीय स्थान और भरोसेमंद व्यापारी से ही खरीदना चाहिए और मिलावट खोर व्यापारियों की पुलिस में शिकायत दर्ज करें। 

 

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