रामदाना-एक बहुपयोगी बहुमूल्य फसल
डॉ गजेन्द्र सिंह तोमरप्राध्यापक (सश्यविज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय,
कृषक नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़)
भारत की अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी प्रवृत्ति की है जिसके भोजन में आवश्यक पोषक तत्वो यथा प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन्स) की कमी रहती है जिससे बड़ी तायदाद में बच्चे व वयस्क कुपो षण के शिकार हो रहे है । हमारे पारंपरिक भोजन में विविध अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, जौ, गेंहू, मक्का तथा दालों में अरहर, मूँग, उड़द, लोबिया, मसूर, चना, कुल्थी, तिवउ़ा आदि सम्मिलित हुआ करते थे जिससे हमारे शरीर को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते रहते थे । फलस्वरूप हमारे पूर्वज ऊर्जावान, स्वस्थ एवं दीर्धजीवी हुआ करते थे । हरित क्रांति के फलस्वरूप गेंहू और धान फसल चक्र का बोलवाला हो गया गया जिसके चलते गेंहू, चावल और थोड़ी सी दाल हमारे भोजन का अहम् हिस्सा बन कर रह गए तथा मोटे और पोषक अनाज आम आदमी की थाली से गायब ही हो गए। इस बदलाव का खामयाजा देश की बहुत बड़ी आबादी खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के रूप में भुगतने अभिषप्त है। अभी हाल ही में हमारे देश में खाद्य सुरक्षा कानून लागू किया गया है। सही मायने में देश में खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा की भी दरकार है । इसके लिए सीमित लागत में कठिन वातावरण में भी अधिकतम उत्पादन देने वाली अल्पप्रयुक्त फसलो की खेती को भी प्रोत्साहित करने की महती आवश्यकता है। ऐसी ही सर्वगुणिय आदर्श फसल है-रामदाना, जिसे राजगिरा तथा चौलाई के नाम से भी लोकप्रिय है। चौलाई अर्थात रामदाना एक बहुउद्देशीय एवं बहुमूल्य अल्प प्रयुक्त खाद्यान्न है जिसके पत्ते से लेकर तना, फूल और दाना उपयोग में लाये जाते है । इसका बीज पीला सफेद खसखस जैसा दिखता है । आमटूर पर रामदाने की खेती सब्जी-भाजी और दानो के लिए की जाती है । राजगिरा को दाना या आटा दोनों रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है । इसके दानो को फुलाकर इससे अनेको प्रकार के स्वादिष्ट व पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे लड्डू, चिक्की, हलवा आदि तैयार किये जाते है । अमेरिका में राजगिरा से विविध बैकरी पदार्थ यथा ब्रेड, बिस्कुट, पास्ता, पेस्ट्री, केक आदि तैयार किये जाते है ।
दरअसल बथुआ कुल (चिनोपोडेसी) में जन्मी यह कूट धान्य (स्युडोसीरियल-नान-सीरियल) है जो मनुष्य के लिए आवश्यक पोषक तत्वो के लिहाज से अत्यन्त धनी और गुणकारी है । मेहनतकश किसान इसे खाकर ऊर्जायुक्त होकर ईश्वर का शुक्रिया अदा करते थे । इसके लाभो से उपकृत होकर उन्होने इसका नाम रामदाना (भगवान का दाना) और राजगीरा (शाही अनाज) रखा जिसे अंग्रेजी में ऐमरंथ कहते है । ऐमरंथ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई मानी जाती है जिसका भावार्थ मृत्यु की संभावना को कम करना है । पौष्टिकता से परिपूर्ण होने के कारण इसको उपवास के दिनों मे खाया जाता है । इसमें गेंहू, चावल की अपेक्षा प्रोटीन की मात्रा अधिक पायी जाती है । चौलाई के दानो में पाई जाने वाली आवश्यक अमीनो अम्ल व लाइसीन की मात्रा अन्य खाद्यान्न की तुलना में ज्यादा होती है । शाकाहरी लोगों के लिए चौलाई एक विशेष खाद्य स्त्रोत है जिसकी गुणवत्ता मछली में उपलब्ध प्रोटीन के बराबर मानी जाती है । गेहूँ की तुलना में चौलाई के दानो में 10 गुना से अधिक कैल्शियम, चार गुना से अधिक वसा, दो गुना रेशा व तीन गुना से अधिक लोहा पाया जाता है । इसके अलावा मानव को स्वस्थ्य व उर्जावान रखने के लिए तमाम आवश्यक पोषक तत्व इस नन्हे बीज में विद्यमान है तभी तो इसके 100 ग्राम दानो का सेवन करने से 410 कि.ग्रा. कैलौरी हमें प्राप्त होती है जो कि अन्य अनाजो से काफी अधिक है ।
गेहूं, चावल व रामदानें का पोषक मान (प्रति 100 ग्राम दाना)
पोषक तत्व गेंहू चावल रामदाना (चौलाई)
प्रोटीन (ग्राम) 11.8 6.8 15.6
वसा (ग्रा.) 1.5 0.5 6.3
रेशा (ग्रा.) 1.2 0.2 2.4
खनिज लवण (ग्रा.) 1.5 0.7 2.9
कैल्शियम (मि.ग्रा.) 41 10 222
लाईसिन (ग्रा.) 2.9 3.7 5.5
मिथिय¨निन (ग्रा.) 1.5 2.4 2.6
सिस्टीन (ग्रा.) 2.2 1.4 2.1
आईस¨ल्युसिन (ग्रा.) 3.3 3.9 3.9
वसा (ग्रा.) 1.5 0.5 6.3
रेशा (ग्रा.) 1.2 0.2 2.4
खनिज लवण (ग्रा.) 1.5 0.7 2.9
कैल्शियम (मि.ग्रा.) 41 10 222
लाईसिन (ग्रा.) 2.9 3.7 5.5
मिथिय¨निन (ग्रा.) 1.5 2.4 2.6
सिस्टीन (ग्रा.) 2.2 1.4 2.1
आईस¨ल्युसिन (ग्रा.) 3.3 3.9 3.9
लोहा (मि .ग्रा.) 3.5 1.8 13.9
ऊर्जा (कि.ग्रा.कैल¨री) 346 345 410
ऊर्जा (कि.ग्रा.कैल¨री) 346 345 410
इसके पत्तो की भाजी चौलाई के रूप में आज भी लोकप्रिय है तथा वर्ष की सभी ऋतुओ में हमें उपलब्ध रहती है । यहीं नहीं जन-जातीय क्षेत्रों में रामदाने का प्रयोग अनेक प्रकार के रोग दोष दूर करने में बखूबी से किया जाता है । इसके अलावा रामदाने के तेल में स्क्वालिन नामक पदार्थ पाया जाता है जिसे सौन्दर्य प्रसाधनो , दवा तथा कम्प्यूटर की डिस्क की चिकनाई में प्रयोग किया जाता है ।
रामदाना की प्रजातियाँ
चौलाई, रामदाना या राजगिरा के नाम से जाने जाना वाला अमरन्थेसी कुल का यह पौधा सीधा बढ़ता है जिसकी पत्तियाँ चौड़ी व बालियाँ भूरी अथवा लाल रंग की होती है । इसकी चार प्रजातियाँ- अमरेन्थस हाईप¨कान्ड्रएकस, अमरेन्थस कारडेन्टस, अमरेन्थस एडूलिस, अमरेन्थस क¨रून्टस दानो के लिए लगाई जाती है । सब्जी के लिए मुख्यतः अमरेन्थस डूबियस, अमरेन्थस व¨लीटन, अमरेन्थस विरीडीस, अमरेन्थस ट्राइकलर का उपयोग किया जाता है, जबकि अमरेन्थस हाइब्रिड नामक प्रजाति सब्जी व चारे के लिए लगाई जाती है ।
रामदाना उत्पादन की सस्य तकनीक
विश्व के अनेक देशो में चौलाई-रामदाना की खेती प्रचलित है । भारत में इसकी खेती जम्मू कश्मीर से लेकर दक्षिण व उत्तर पूर्वी भारत में अल्प प्रयुक्त फसल के रूप में की जाती है । देश के पर्वतीय क्षेत्रों में रामदाना एक नकदी फसल के रूप में उगाई जाती है तथा पहाड़ियो के भोजन का अहम् हिस्सा रखती है । रामदाने की खेती गैर उपजाऊ, कंकरीली-पथरीली भूमियो तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है । रामदाने की फसल में सूखा सहन करने की अच्छी क्षमता होती है ।
भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी
रामदाने की खेती अमूमन सभी प्रकार की भूमियो मे की जा सकती है परन्तु अच्छी उपज के लिए जल निकास युक्त बलुई दो दोमट मिट्टी उत्तम रहती है । पौध बढ़वार और विकास के लिए मृदा की पीएच मान 6 से 8 के मध्य अच्छा माना जाता है ।
रामदाने का बीज बहुत छोटा होता है । अतः खेत की अच्छी प्रकार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए जिससे बीजो का मृदा से संपर्क अच्छी प्रकार से हो सके इसके लिए खेत में 2-3 बार जुताई कर पाटा लगाएं व खेत को समतल कर लेना चाहिए ।
उन्नत किस्मो का चुनाव
अखिल भारतीय अल्प प्रयुक्त फसल अनुसंधान परियोजना द्वारा रामदाने की अनेको उन्नत किस्में विकसित की गई है । मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त रामदाना की किस्मो का विवरण अग्र प्रस्तुत है ।
सुवर्णा: इस किस्म के पौधे 120-130 सेमी. ऊँचे होते है जो 80-90 दिन में पक कर तैयार हो जाते है । इसकी उपज क्षमता 16 क्विंटल प्रति हैक्टर है ।
गुजरात अमरेन्थ-1: यह किस्म 100-110 दिन में तैयार होकर लगभग 20 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है ।
गुजरात अमरेन्थ-2: यह शीघ्र तैयार होने वाली (90 दिन) उन्नत किस्म है जिससे लगभग 23 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त होती है ।
कपिलासाः इस किस्म पौधे 165 सेमी. लम्बे होते है । फसल 95 दिन में तैयार होकर लगभग 13-14 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है । यह कीट-रोग प्रतिरोधी किस्म है ।
गुजरात अमरेन्थ-3: इस किस्म के पौधे 130-150 सेमी. लम्बे होते है । यह 90-100 दिन में पककर तैयार ह¨ जाती है तथा प्रति हैक्टर 12-13 क्विंटल उपज देने में सक्षम है ।
आर.एम.ए.-4: यह किस्म 122 दिन में तैयार होकर 13-14 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है ।
आर.एम.ए.-7: इस किस्म के पौधे 120 सेमी. ऊँचे ह¨ते है तथा 126 दिन में तैयार होकर लगभग 14-15 क्विंटल प्रति हैक्टर उपज देती है ।
सही समय पर करें बुवाई
दानो एवं सब्जी-भाजी के लिए रामदाने की फसल अमूमन वर्ष भर ली जा सकती है । मैदानी क्षेत्र¨ में इसकी बुवाई जून से जुलाई और अक्टूबर से नवम्बर में करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है । सिंचाई की सुविधा ह¨ने पर इसे फरवरी-मार्च में भी बोया जा सकता है ।
कितना बीज और कैसे करें बुवाई
बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर रहती है । छिड़कवां विधि से बुवाई करने पर 2 किग्रा. तथा कतार विधि से बुवाई करने पर 1.2 से 1.5 किग्रा प्रति हैक्टर बीज पर्याप्त रहता है । प्रायः किसान छिटकवां विधि से बुवाई करते है क्योकि इससे कम मेहनत में सुगमता से बुवाई की जा सकती है । परन्तु अधिकतम उपज के लिए बुवाई पंक्तियो में करना चाहिए । कतार विधि से बुवाई करने से सस्य क्रियाओ में आसानी होती है । साथ ही उचित पौध संख्या और समुचित बढवार होने से उपज अधिक प्राप्त होती है । कतार से कतार 45 सेमी. तथा पौध से पौध मध्य 15 सेमी. का फांसला रखना उत्तम रहता है । बीज क¨ 2 सेमी. की गहराई पर बोना चाहिए । ध्यान रखें की बुवाई करते समय खेत में पर्याप्त नमीं रहे वरना अंकुरण प्रभावित ह¨ सकता है । आसानी से बुवाई करने के लिए बीज को रेत के साथ मिलाकर (1:4) बोया जाना अच्छा रहता है ।
खाद एवं उर्वरक
रामदाने की फसल प्रायः कम उपजाऊ एवं सीमांत भूमियो में की जाती है । खाद एवं उर्वरको का इस्तेमाल लेशमात्र किया जाता है जिससे किसानो को कम उपज प्राप्त होती है। सामान्य भूमियो में 5-6 टन गोबर की खाद को खेत में एक समान बखैर कर जुताई कर देना चाहिए । इसके अलावा बुवाई के समय 60 किग्रा. नाइट्रोजन, 40 किग्रा. फास्फ़ोरस और 20 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से कतार में देना लाभप्रद पाया गया है ।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
खरीफ में बोई गई रामदाने की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है । रबी एवं जायद में बोई जाने वाली फसल में 3-4 सिंचाईयो की आवश्यकता ह¨ती है । फूल और दाना बनते समय खेत में पर्याप्त नमीं रहने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है । वर्षा ऋतु के समय खेत से में जल निकास की व्यवस्था अवश्य होना चाहिए । बुवाई के 5-6 दिन बाद खेत में खरवतवार उग आते है जिनके नियंत्रण हेतु आवश्यकतानुसार निदाई गुड़ाई करना चाहिए ।
कीट रोग प्रबंधन
सामान्यत: रामदाने की फसल में कीट ब्याधि का प्रकोप कम ही होता है । यदा कदा पौधो पर पर्णजालक कीट का प्रकोप हो जाता है । यह कीट पत्तियो को ¨ क्षति पुहंचाता है । इसके नियंत्रण के लिए मिथाईल-ओ-डेमिटान या डाई मिथेएट के 0.1 प्रतिशत अथवा क्यूनालफास के 1.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना लाभप्रद रहता है ।
कटाई एवं उपज
रामदाने की फसल लगभग 90-100 दिन में तैयार हो जाती है । बालियाँ हल्की पीली पड़ने पर कटाई कर लेना चाहिए . बिलंब से काटने पर दाने झड़ने लगते है । अच्छी प्रकार सुखाने के बाद मड़ाई कर दाना साफ कर लें । सामान्यतौर पर रामदाने की औसतन 15-16 क्विंटल प्रति हैक्टर तकदानो की उपज प्राप्त होती है । उन्नत सस्य विधियो का अनुशरण करते हुए 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर तक उपज ली जा सकती है ।बुवाई के 30 दिन बाद पत्तियाँ हरी सब्जी के रूप में इस्तेमाल अथवा बाजार में बेच कर मुनाफा अर्जित किया जा सकता है ।
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