डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सश्यविज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय,
कृषक नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़)
   
 भारत के अनेक गेहूँ उत्पादक राज्यों धान फसल की खेती के कारण  गेहूँ की बुवाई में विलम्ब हो जाता  है । मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों  में 
गेहूँ की बुवाई बहुधा धान, तोरिया, आलू, गन्ना की पेड़ी या अरहर के बाद की 
जाती है जिससे गेहूँ की उपज काफी कम प्राप्त होती है।गेहूँ की विलम्बित बुवाई से
 भी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है, इसके लिए निम्न सस्य तकनीकें अपनाना 
चाहिए: 
1. विलम्बित बुवाई 
के लिए कम अवधि में तैयार होने वाली किस्में जैसे एचडी 2285, राज 3777, राज
 3765, अरपा  आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
2.
 प्रति हैक्टर 125 किग्रा. बीज दर (सामान्य से 25 प्रतिशत अधिक) का प्रयोग 
करना चाहिए क्योकि देर से बुवाई करने से पौधो  में कल्ले  कम निकलते है । 
बीज को  रात भर पानी में भिंगो कर 24 घण्टे बाद अंकुरित कर बोआई हेतु 
प्रयुक्त करें ।
3. खेत की
 अन्तिम जुताई के समय सड़ी हुई गोबर की खाद  5-7 टन प्रति हैक्टर 
की दर से मिट्टी में मिलाएं । फसल में उर्वरक नाइट्रोजनःफॉस्फोरसःपोटाश को  
क्रमशः 80:40:30 किग्रा. प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए । 
नत्रजन की मात्रा  सामान्य गेहूँ की अपेक्षा कम ही रखी जाती है ।
4.
 विलम्ब से बोये गये गेहूँ में सामान्य की अपेक्षा जल्दी-जल्दी सिंचाइयो  
की आवश्यकता पड़ती है । पहली सिंचाई बोने के 25-30 दिन पर शिखर जडें  बनते 
समय अवश्य करें । आगामी सिंचाईयाँ फसल व मृदा की आवश्यकतानुसार 15-20 दिन 
के अन्तराल पर करें ।
5.अन्य सभी सस्य क्रियाएँ सामान्य गेहूँ की भांति अपनाना चाहिए ।
 
 
 
 
 
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