भारत में धान-गेंहूँ एक महत्वपूर्ण फसल प्रणाली है जिसके अन्तर्गत लगभग
10.5 मिलियन हैक्टर क्षेत्र आता है । खरीफ की विभिन्न फसलों के बाद
गेहूँ की खेती की जाती है जैसे धान, मक्का, उर्द, मूंग आदि। धान के बाद
गेहूँ की खेती में अनेक समस्याये आती हैं जिन पर समुचित ध्यान न दिया जाए
तो गेहूँ की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। धान-गेहूँ फसल चक्र की प्रमुख समस्याएँ हैं-
1.
धान-गेहूँ दोनों ही अधिक पोषक तत्व चाहने वाली एक ही कुल की धान्य फसले
हैं। इस फसल पद्धति के अपनाने से प्रमुख पोषक तत्वो के अलावा भी कुछ
विशेष पोषक तत्व जैसे कि जिंक व सल्फर की भूमि में कमी आ सकती है।
2.
धान की खेती के दौरान लेह तैयार (पडलिंग) करने में मृदा की भौतिक दशा
बिगड़ जाती है। इसके कारण गेहूँ की फसल को मिट्टी की वांछित दशा नहीं मिल
पाती है।
3. धान-गेहूँ दोनों ही अदलहनी फसले होने के कारण उर्वरकों विशेषकर नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता पड़ती है।
4.
गेहूँ के लिए खेत की तैयारी हेतु पर्याप्त समय नही मिलता जिससे खरपतवारों
का प्रकोप अधिक होता है। बहुधा धान की कटाई विलम्ब से होने पर गेहूँ की
बोआई समय पर नहीं हो पाती है। इससे गेहूँ का उत्पादन कम होता है।
धान के बाद गेहूँ की अच्छी उपज लेने के उपाय
1.
धान की कटाई भूमि की सतह से करना: धान के तने और पत्तो में कार्बन की
मात्रा अधिक तथा नाइट्रोजन की कम होती है, जिसके कारण धान का पुआल यदि खेत
में रह जाता है, तो जाड़े में यह सड़ता नहीं है तथा दीमक का प्रकोप बढ़ जाता
है। यह देखा गया है कि जिस स्थान पर खेत में धान के ज्यादा अवशेष रह जाते
हैं। वहाँ पर प्राथमिक अवस्था में गेहूँ की फसल पीली पड़ जाती है जिससे
उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ता है। अतः धान की फसल को भूमि की सतह से ही
काट लेना चाहिए।
2.कम्बाइन से धान की कटाई करने पर खेत में फैले पुआल के सूखने पर उसे जलाने के पश्चात खेत की जुताई करना चाहिए।
3.खेत
की तैयारी के लिए उचित यंत्रों का प्रयोग करना चाहिए। धान रोपाई हेतु खेत
मचाई अर्थात पडलिंग के कारण जमीन की सतह के नीचे कड़ी परत बन जाती है, जो
रबी फसलों की जड़ो के बढ़वार में बाधक होती है। अतः गेहूँ बोने के लिए खेत की
पहली दो जुताई डिस्क हैरों से करने के बाद कल्टीवेटर या देशी हल से अन्य
जुताइयाँ करनी चाहिए। इससे भूमि के अन्दर की कड़ी सतह टूट जाएगी और ढेले भी
नहीं होंगे।
4. धान के
अवशेष को सड़ाने के लिए बैक्टीरिया भूमि मे उपस्थित नाइट्रोजन को अपने पोषण
के लिए प्रयोग कर लेते है। जिससे गेहूँ की फसल को प्रारम्भिक अवस्था में
नाइट्रोजन की आपूर्ति एक समस्या है अतः गेहूँ को दी जाने वाली नाइट्रोजन
में से 10 किग्रा. नाइट्रोजन प्रारम्भिक जुताई करते समय (पलेवा से पहले) ही
खेत में डाल देनी चाहिए। इससे धान के अवशेष शीघ्र ही सड़ गल जाते हैं और
गेहूँ की फसल को प्रारम्भिक अवस्था में नाइट्रोजन की कमी महसूस नही होती
है।
5. गेहूँ की बोआई अच्छी
प्रकार से पंक्तियों मे करना चाहिए। धान के बाद गेहूँ लेने की अवस्था में
बोआई सीड ड्रिल या नाई (पोरा) द्वारा कूड में ही करना चाहिए। छिटकवाँ विधि
से बीज ज्यादा लगता है तथा बीज बराबर दूरी व गहराई पर नहीं पड़ता है। इससे
वांछित पौध संख्या नहीं होती और उत्पादन कम होता है।
6.
पहली सिंचाई जल्दी नहीं करना चाहिए। धान के खेत में कटाई के बाद भी भूमि
की कड़ी सतह के आस पास काफी नमी रहती है। अतः पहली सिंचाई बोने के 4-5
सप्ताह बाद ही करना चाहिए।
7. गेहूँ के बाद दलहनी फसलें जैसे उर्द या मूंग की खेती करना चाहिए। इससे भूमि की भौतिक दशा और उर्वरता में सुधार होता है।
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