सोमवार, 14 मार्च 2016

कासनी-सम्पूर्ण स्वास्थ्य रक्षक


गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

कासनी (चिकोरियम इंटाइवस) एस्टेरेसी कुल का पौधा है जो बतौर खरतवार शीत  ऋतू में स्वमेव उगता  है, जिसे चिकोरी भी कहा जाता है। चिकोरी के पौधे अक्सर चारे वाली फसल बरसीम और लूसर्न के खेत में खरपतवार  के रूप में उगता है।  इसका चारा अधिक मात्रा  में खाने से पशु बीमार हो जाते है। पुरातन काल में ग्रीक और इजिप्ट वासी चिकोरी के पौधों का सेवन करते थे ताकि उन्हें विभिन्न रोगों से निजात मिल सके और वे स्वस्थ्य रहे।  भारत के लगभग सभी प्रदेशों में पाये जाने वाले इस बहुवर्षीय झाड़ीनुमा पौधे की  उंचाई 30 से 120 सेमी होती है। इसके तने के पास वाले पत्ते खंडित और धारदार होते है जबकि ऊपर की पत्तियाँ छोटी,सरल तथा धारदार होती है ।  इसके फूल आकर्षक  चमकीले नीले रंग के होते है। इसके बीज छोटे, सफ़ेद रंग के  जो वजन में हल्के  होते है।  कासनी की जड़ गोपुच्छाकार बाहर से हल्की भूरी और अंदर से सफ़ेद होती है।  इसका स्वाद फीका और कड़वा (तिक्त) होता है।




कासनी में होते है बेसुमार औषधीय गुण
  • कासनी के सम्पूर्ण  पौधे  (जड़, तना, पत्तियाँ, फूल और बीज) में  ओषधीय गुण होते है।
  • कासनी के बीज, भूख बढ़ाने वाले, कृमिनाशक, लीवर रोग, कमर दर्द, सिर दर्द, दिल की धड़कन , जिगर की गर्मी, पीलिया आदि को दूर करता है।
  • कासनी में खनिज लवण जैसे पोटैशियम, लोहा, कैल्शियम और फॉस्फोरस के आलावा विटामिन-सी और अन्य पोषक तत्व पाये जाते है। कासनी का प्रभाव शामक/निद्राजनक होता है जो कि इसमें उपस्थित लैक्टुकोपिक्रीन के कारण होता है।
  • कासनी यकृत (लीवर) की रक्षा करता है। यह पाचन को बढ़ाता है।  यह रक्तवर्धक है तथा खून को साफ़ करता है। मूत्रल होने से पेसाब की मात्रा को बढ़ाता है और पेसाब रोगों और शरीर में सूजन से राहत देता है। इसके सेवन से डायबिटीज रोगियों में ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद मिलती है। इसके पत्तों के लेप से जोड़ों का दर्द दूर होता है। इसकी जड़ को पीस कर बिच्छू के काटे जाने की जगह पर लगाने से आराम मिलता है।


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