गुरुवार, 17 मार्च 2016

मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण ओषधि है हनी प्लांट-स्टीविया


डॉ जी.एस. तोमर 
प्रोफेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीगढ़)

             क्या आप जानते है कि प्रकृति ने हमें एक ऐसे पौधे से नवाजा है, जिसके तने और पत्तियों में मिठास हो ।  जी हाँ इस अद्भुत पौधे को मधु पात्र या मीठी पत्ती यानी स्टीविया कहते है जिसके जिसके पोर-पोर में मिठास भरा होता है और इसके सत्व में चीनी से कई सौ गुना मिठास  होता है और इस मिठास में शून्य कैलोरी  ऊर्जा होती है। प्राचीन काल से शक्कर भोजन का आवश्यक घटक है जो कि गन्ने (60%) और चुकंदर से प्राप्त होती है। लेकिन इस प्रकार से प्राप्त शक्कर में मिठासपन के गुण मौजूद तो होते है लेकिन जो मधुमेह रोगी के लिए हानिकारक होते है। 

स्टेविया की पत्तियाँ में शक्कर की तुलना में 30-45 गुना मिठास पाई जाती है और इसे मिठास के उद्देश्य से प्रत्यक्ष रूप से (सीधे) उपयोग कर सकते है।स्टेविया की पत्तियों से निकाला गया सफेद रंग का पाउडर चीनी से 100 से 300 गुना अधिक मीठा होता है। यह शून्य कैलोरी स्वीटनर है इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है।शून्य कैलोरी ऊर्जा वाली मिठास के रूप में यह  डायबटीज़ यानि मधुमेह रोगी  एवं मोटापा ग्रस्त लोगों के लिए सुरक्षित औषधि है क्योंकि यह ब्लड सुगर लेबिल को प्रभावित नहीं करता है। अतः इसे शर्करा के खाद्य विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।स्टीविया उत्पाद, प्राकृतिक होने के साथ-साथ एक प्रकार का डाईटरपीनाएड ग्लाइकोसाइड है, जिसे कार्बोहायड्रेट के विकल्प के रूप में शर्करा रोग, मोटापा घटाने तथा मिठास  उत्पन्न करने वाले पदार्थ के रूप में, मिठाइयां, बिस्किट, चाकलेट, आईसक्रीम, केन्डीस  च्युंगम, मिंट रिफ्रेशनर और टूथ पेस्ट बनाने में  इसका उपयोग  किया जाने लगा  है।
पैरागुआ नामक राष्ट्र से चलकर भारत पहुंची एस्ट्रेसी (सूर्यमुखी) परिवार की वनस्पति  स्टेविया (स्टेविया रेवूडियाना)  नामक जड़ी-बूटी की खेती  ब्राजील, जापान, कोरिया, ताईवान और दक्षिण पूर्व एशिया में  प्रचलित  है। भारत में यह मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और छत्तीसगढ़ में छोटे-बड़े पैमाने पर उगाई जाने लगी  है।
ऐसे करें स्टीविया की खेती 
उपयुक्त जलवायु 
स्टीविया  अर्ध – नम और सम उष्ण कटिबंधीय पौधा है।  इसकी पैदावार  के लिए दिन का तापमान   41 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तथा रात का  तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम नहीं होना चाहिए । तापमान एवं लम्बे दिनों का फसल के उत्पादन पर अधिक प्रभाव पङता होता है।
भूमि की तैयारी 
स्टीविया की सफल खेती के लिये उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि जिसका पी०एच० मान 6 से 7 के मध्य हो, उपयुक्त पायी गयी है।  जल भराव वाली या क्षारीय जमीन में स्टीविया की खेती नही की जा सकती है।  सर्प्रथम खेत को भली भांति जोत कर मिट्टी को भुरभुरा कर समतल कर लेना चाहिए।  
उन्नत किस्में 

स्टीविया की पत्तियों में उपस्थित ग्लूकोसाइड के आधार पर बिभिन्न जलवायु हेतु सन फ्रट्स लिमिटेड , पूना द्वारा तिन प्रजातियों का बिकास किया गया है जो निम्न है 
  • एस० आर० बि० -१२३ : स्टीबिया के इस किस्म में ग्लूकोसाइड कि मात्रा ९-१२ % तक पाई जाती है तथा वर्ष भर इसकी ५ कटाइयाँ ली जा सकती है ।
  • एस० आर० बि० - ५१२ : स्टीबिया कि यह किस्म उत्तर भारत के लिए ज्यादा उपयुक्त है वर्ष भर में इसकी चार कटाइयाँ ली जा सकती है तथा इसमे ग्लूकोसाइड कि मात्रा ९-१२% तक होती है ।
  • एस० आर० बी ० - १२८ : स्टीबिया कि यह किस्म सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए सर्वोत्तम है इसमे ग्लूकोसाइड कि मात्रा २१%तक पाई जाती है तथा वर्ष में चार कटाइयाँ भी ली जा सकती है ।
कब और कैसे लगाये स्टीविया 
               वैसे तो स्टीविया की फसल वर्ष में कभी भी लगाई जा सकती है लेकिन रोपाई के लिए  फरवरी-मार्च का महीना उपयुक्त रहता है।  उचित वातावरण में स्टीविया की वर्ष में 2-3 फसलें ली जा सकती है।  इस पौधे के बीज बहुत छोटे होते है जिनकी अंकुरण क्षमता भी न्यून होती है।  अतः व्यवसायिक खेती के लिए पौधे की कटिंग का उपयोग किया जाता है।  पौधों की छोटी कटिंग को पॉलिथीन बेग में मिट्टी + रेत + गोबर खाद  का मिश्रण भर कर इनमे छोटी-छोटी कलमें लगाई जाती है। इन पोलीथीन बेग को  7-8 सप्ताह के लिए हरित गृह (ग्रीन हाउस) में रख कर पादप की अभिवृद्धि कराइ जाती है। पौधों की कटिंग को सीधे हरित गृह ( ना अधिक गर्मी और ना ही अधिक ठण्ड हो)  में तैयार क्यारिओं में भी सीधे रोपा जा सकता है। स्टीविया के पौधों की  रोपाई मेङो पर किया जाना चाहिए।  इसके लिये 15  सेमी ऊँची  2 फीट चौड़ी क्यारियाँ   बनायें  तथा उन पर कतार से कतार की दूरी 40 सेमी० एवं पौधों में पौधें की दूरी 20-25 सेमी०  रखते हुए पौध रोपण करें।  दो क्यारियों के  बीच 1.5 फीट की जगह नाली या रास्ते के रूप में छोङ देते है। 
खाद एवं उर्वरक
मुख्या खेत में स्टीविया पौध रोपण  के  20 से 25 दिन पूर्व खेत में 10 से 15 टन/हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद मिलाना चाहिए। अधिक उपज के लिए रोपाई के समय नत्रजन, फॉस्फोरस और पोटाश क्रमशः  60: 30:45  कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। बोरान और मैग्नीज का छिड़काव करके सूखी पत्तियों की उपज को बढ़ाया जा सकता है।
सिंचाई करें भरपूर 
स्टीविया की फसल सूखा सहन नहीं कर पाती है इसको लगातार पानी की आवश्यकता होती है सर्दी के मौसम में 10 दिन के अन्तराल पर तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिये।  स्टीविया की  फसल में सिंचाई करने का सबसे उपयुक्त साधन सिचाई की  स्प्रिंकलरर्स या ड्रिप पद्धति  है। खेत से अनावश्यक जल की निकासी की व्यवस्था होना जरूरी होता है क्योंकि इसके पौधे जल भराव को सहन नही कर पाते है। 
खरपतवार नियंत्रण
सिंचाई के पश्चात खेत की निराई खेत की निराई- गुङाई करनी चाहिये जिससे भूमि भुरभुरी तथा खरपतवार रहित हो जाती है जो कि पौधों में वृद्धि के लिये लाभदायक होता है। 
रोग एवं कीट नियंत्रण
सामान्यतरू स्टीविया की फसल में किसी भी प्रकार का रोग या कीङा नहीं लगताहै कभी-कभी पत्तियों पर धब्बे पङ जाते है जो कि बोरान तत्व की कमी के लक्षण है। इसके नियंत्रण के लिये 6 प्रतिशत बोरेक्स का छिङकाव किया जासकता है कीङो की रोकथाम के लिये नीम के तेल को पानी में घोलकर स्प्रेकिया जा सकता है। 
आवश्यक है फूलों को तोङना
             स्टीविया की पत्तियों में ही स्टीवियोसाइड पायेजाते है इसलिये पत्तों की मात्रा बढायी जानी चाहिये तथा समय-समय पर फूलोंको तोङ देना चाहिये अगर पौधे पर दो दिन फूल लगे रहें तथा उनको न तोङाजाये तो पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा में 50 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। फूलों की तुङाई, पौधों की खेत में  रोपाई के 30, 45, 60,75 एवं 90 दिन के पश्चात एवं प्रथम कटाई के समय की जानी चाहिये।  फसल की पहली कटाई के पश्चात 40, 60 एवं 80 दिनों पर फूलों को तोङने की आवश्यकता होती है
फसल की कटाई
           स्टीविया की पहली कटाई पौधें रोपने के लगभग ४ महीने पश्चातकी जाती है तथा शेष कटाईयां 90-90 दिन के अन्तराल पर की जाती है इसप्रकार वर्ष भर में 3-4 कटाईया तीन वर्ष तक ही ली जाती है, इसके बादपत्तियों के स्टीवियोसाइड की मात्रा घट जाती है।  पौधों को जमीन से 5 -8  सेमी० ऊपर से काटना चाहिए।तथा इसके पश्चात पत्तियों को टहंनियों से तोङकर धूप में अथवा ड्रायर द्वारा सूखा लेते है।  तत्पश्चात सूखी पत्तियों को ठङे स्थान में शीशे के जार या एयर टाईट पोलीथीन पैक में भर देते है
उपज- वर्ष भर में स्टीविया की 3-4कटाईयों में लगभग 70 कु० से 100 कु०सूखे पत्ते प्राप्त होते है
लाभ
वैसे तो स्टीविया की पत्तियों का अन्तर्राष्ट्रीय बाजार भाव लगभगरू० 300-400 प्रति कि०ग्रा० है लेकिन अगर स्टीविया की बिकीदर रू० 100ध्प्रति कि०ग्रा० मानी जाये तो प्रथम में एक एकङ में भूमि से 5 से 6 लाख की कुल आमदनी होती है, तथा आगामी सालों में यह लाभ अधिक होता है कुल आमदनी होती है, तथा आगामी सालों में यह लाभ अधिक होता है कुल तीन वर्षो में लगभग 1 एकङ से 5-6 लाख का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है

कोई टिप्पणी नहीं:

काबुली चने की खेती भरपूर आमदनी देती

                                                  डॉ. गजेन्द्र सिंह तोमर प्राध्यापक (सस्यविज्ञान),इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि महाव...