डॉ गजेंद्र सिंह तोमर, प्रोफ़ेसर(एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से
धान-गेंहू एक महत्वपूर्ण फसल प्रणाली है जिसके अंतर्गत लगभग 11 मिलियन हेक्टेयर
क्षेत्र आता है. देश में यह प्रणाली पंजाब, हरियाणा,बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य
प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में प्रचलित है। इन प्रदेशों में लम्बी
अवधि की धान किस्मों की कटाई नवम्बर के
अंतिम सप्ताह से लेकर 15 दिसम्बर या और विलम्ब से हो पाती है। भारी मिटटी वाले धान के खेतों
में नमीं की अधिकता होने के कारण गेंहू बुवाई हेतु खेत तैयार करने हेतु उपयुक्त
दशा नहीं मिल पाती है जिससे गेंहू की बुआई काफी विलंब से हो पाती है. विलंब से
बुवाई करने से गेंहूँ की पैदावार कम होने के साथ-साथ दानों की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। सही समय और कम लागत में गेहूं की खेती करने के लिए जीरो टिलेज अत्यन्त
लाभकारी तकनीक है।
क्या
है जीरो टिलेज तकनीक
जीरो टिल सीड ड्रिल (हैप्पी सीडर) फोटो साभार गूगल |
क्यों आवश्यक है जीरो टिल बुवाई
पारंपरिक तौर पर गेंहू की बुवाई हेतु खेत की तैयारी के लिए 4-5 बार जुताई की जाती है, जिसका उपज में कोई विशेष लाभ नहीं होता है बल्कि खेती तैयारी में अधिक समय लगने के कारण बुवाई में देरी हो जाती है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि के अलावा प्रति इकाई कम पौध संख्या स्थापित होने के कारण उपज कम प्राप्त होती है. प्रयोगों से ज्ञात होता है कि विलंब से बुवाई (10 दिसम्बर के बाद) की वजह से अधिक लागत के बावजूद उपज में 25-30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर प्रति दिन की कमीं आ सकती है। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है। जबकि जीरो टिलेज तकनीक अपनाने से न केवल बुवाई के समय में 15-20 दिन की बचत संभव है, बल्कि उपज का स्तर बरक़रार रखते हुए खेत की तैयारी पर आने वाली लागत भी बचाई जा सकती है। अतः धान-गेंहू फसल प्रणाली अपनाने वाले किसान भाइयों को चाहिए कि वे जीरो टिलेज मशीन से गेंहू की बुवाई समय पर संपन्न करें । इस विधि का प्रयोग कर चार हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक बचत होने के साथ ही अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
जीरो टिल मशीन से बुवाई ऐसे करें
बुआई शुरू करने के पूर्व मशीन को अच्छी तरह समायोजित कर लेना चाहिए। धान की कटाई के उपरान्त खेत में उपयुक्त नमीं होना आवश्यक है। बिना जुताई वाले खेत में चलने पर यदि पैर का हल्का निशान पड़ता है तो बुवाई के लिए उपयुक्त दशा मानी जा सकती है। यदि खेत में नमीं कम है तो धान फसल कटाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए। बुआई के पूर्व खरपतवार नष्ट करने के लिए तीन दिन पूर्व एक लीटर ग्लाईफोसेट 41 % 1000 ग्राम सक्रीय तत्व (2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) अथवा पैराकाट 1000 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2-3 दिन पूर्व छिड़काव फ्लेट फैन नोज़ल से करें। ध्यान रखें इन खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग अंकुरित या जमीं हुए फसल में न करें। सीड ड्रिल के एक बॉक्स में बीज और एक बॉक्स में आवश्यकतनुसार बीज भर कर बुआई की जा सकती है।
जीरो टिलेज विधि से बुवाई के फायदे
जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की खेती करने से कम लागत के साथ ही उत्पादन भी ज्यादा प्राप्त होता है। इस पद्धति को अपनाने से फसल के अवशेष कार्बनिक पदार्थों के साथ-साथ पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की वृद्धि होती है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति कायम बनी रहती है। फसल में कीट व्याधि लगने का खतरा भी कई गुणा कम हो जाता है। इसमें बीज एवं उर्वरक की कम मात्रा लगती है और खरपतवार जैसे जंगली जई और गुली डंडा आदि का प्रकोप कम होता है। इस पद्धति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर सीड ड्रिल मशीन पर अनुदान का भी प्रावधान है। अतः गेंहू फसल से अधिकतम उपज और मुनाफा प्राप्त करने के लिए किसान भाइयों को इस तकनीक का उपयोग करना चाहिए ।
नोट: कृपया ध्यान रखें बिना लेखक की आज्ञा के इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करना अवैद्य माना जायेगा। यदि प्रकाशित करना ही है तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।
पारंपरिक तौर पर गेंहू की बुवाई हेतु खेत की तैयारी के लिए 4-5 बार जुताई की जाती है, जिसका उपज में कोई विशेष लाभ नहीं होता है बल्कि खेती तैयारी में अधिक समय लगने के कारण बुवाई में देरी हो जाती है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि के अलावा प्रति इकाई कम पौध संख्या स्थापित होने के कारण उपज कम प्राप्त होती है. प्रयोगों से ज्ञात होता है कि विलंब से बुवाई (10 दिसम्बर के बाद) की वजह से अधिक लागत के बावजूद उपज में 25-30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर प्रति दिन की कमीं आ सकती है। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है। जबकि जीरो टिलेज तकनीक अपनाने से न केवल बुवाई के समय में 15-20 दिन की बचत संभव है, बल्कि उपज का स्तर बरक़रार रखते हुए खेत की तैयारी पर आने वाली लागत भी बचाई जा सकती है। अतः धान-गेंहू फसल प्रणाली अपनाने वाले किसान भाइयों को चाहिए कि वे जीरो टिलेज मशीन से गेंहू की बुवाई समय पर संपन्न करें । इस विधि का प्रयोग कर चार हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक बचत होने के साथ ही अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
जीरो टिल मशीन से बुवाई ऐसे करें
बुआई शुरू करने के पूर्व मशीन को अच्छी तरह समायोजित कर लेना चाहिए। धान की कटाई के उपरान्त खेत में उपयुक्त नमीं होना आवश्यक है। बिना जुताई वाले खेत में चलने पर यदि पैर का हल्का निशान पड़ता है तो बुवाई के लिए उपयुक्त दशा मानी जा सकती है। यदि खेत में नमीं कम है तो धान फसल कटाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए। बुआई के पूर्व खरपतवार नष्ट करने के लिए तीन दिन पूर्व एक लीटर ग्लाईफोसेट 41 % 1000 ग्राम सक्रीय तत्व (2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) अथवा पैराकाट 1000 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2-3 दिन पूर्व छिड़काव फ्लेट फैन नोज़ल से करें। ध्यान रखें इन खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग अंकुरित या जमीं हुए फसल में न करें। सीड ड्रिल के एक बॉक्स में बीज और एक बॉक्स में आवश्यकतनुसार बीज भर कर बुआई की जा सकती है।
जीरो टिलेज विधि से बुवाई के फायदे
जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की खेती करने से कम लागत के साथ ही उत्पादन भी ज्यादा प्राप्त होता है। इस पद्धति को अपनाने से फसल के अवशेष कार्बनिक पदार्थों के साथ-साथ पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की वृद्धि होती है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति कायम बनी रहती है। फसल में कीट व्याधि लगने का खतरा भी कई गुणा कम हो जाता है। इसमें बीज एवं उर्वरक की कम मात्रा लगती है और खरपतवार जैसे जंगली जई और गुली डंडा आदि का प्रकोप कम होता है। इस पद्धति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर सीड ड्रिल मशीन पर अनुदान का भी प्रावधान है। अतः गेंहू फसल से अधिकतम उपज और मुनाफा प्राप्त करने के लिए किसान भाइयों को इस तकनीक का उपयोग करना चाहिए ।
नोट: कृपया ध्यान रखें बिना लेखक की आज्ञा के इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करना अवैद्य माना जायेगा। यदि प्रकाशित करना ही है तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।
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