डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
पामारोशा घास की पत्तियों व पुष्प से जिरेनियम नामक बहुपयोगी तेल प्राप्त होता है जिसमें गुलाब जैसी सुगंध आती है। इस
तेल में फैल्लेन्डीन नामक तत्व होता है। इसका स्वाद अदरक की तरह होता है। रोशा तेल
का उपयोग साबुन, अगरबत्ती, श्रृंगार सामाग्री एवं इत्र निर्माण में होता है। इसका तेल हल्का पीला होता है
जिसमें 75 - 85 प्रतिशत तक
जिरेनियाल तथा जिरैनिल एसीटेट 4 से 15 प्रतिशत पाया जाता हैै जो सुगंधीय द्रव्य बनाने वाले
उद्योगों में उपयोग होता है। गर्म तासीर के कारण इसके तेल की मालिश घुटनों तथा
जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए की जाती है। भारत प्रमुख उत्पादक देश है तथा तेल
का निर्यात होता है। प्राकृतिक रूप से उगने वाली इस घास की उपयोगिता को देखते हुए
अब इसकी व्यापारिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
पामारोशा घांस का परिचय
पामारोशा घांस का परिचय
रोशा या पामारोशा (सिम्बोपोगान मार्टिनी) पोएसी कुल की एक बहुवर्षीय सुगंधीय तेल धारक घास है। यह घांस लगभग 1.5 से 2 मी. बढ़ती है। इसकी पत्तियाँ 25 सेमी. लम्बी व 1.5 से 2 सेमी. चैड़ी हल्के हरे रंग की होती है।, तना पीला होता है। पुष्प क्रम कक्षस्थ होता है तथा शीर्ष भाग में 20 से 45 सेमी. तक ऊपरी भाग की 8 से 10 पर्व संधियों पर स्थित रहता है। प्रत्येक पुष्प क्रम की लम्बाई 4-10 सेमी. होती है। कल्लों की संख्या 20 से 150 तक होती है। पुष्क क्रम का रंग हल्का पीला होता है।
उपयुक्त जलवायु
पामारोजा गर्म उष्ण कटिबंधीय जलवायु की फसल है। ऐसे क्षेत्र जहाँ वर्ष में तापमान 30
- 40 डिग्री सेल्सियस हो तथा 150 से. मी. सुवितरित वार्षिक वर्षा के साथ -
साथ प्रचुर मात्रा में धुप उपलब्ध हो, पामारोजा की खेती के लिए उपयुक्त माने जाते
है। कोहरा पड़ने वाले क्षेत्र रोशा की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होते है।
सभी भूमिओं में खेती संभव
यह घास कम उपजाऊ रेतीली,
मुरमयुक्त भूमि से लेकर ऊँची - नीची और लवणीय
भूमि में आसानी से उगाई जा सकती है। बलुई दोमट भूमि जिसमें जलनिकास की समुचित
व्यवस्था हो इसकी खेती के लिए सर्वाेत्तम रहती है। भूमि का पी. एच. मान 6-7 होना चाहिए। खेत की तयारी के लिए वर्षा आगमन से पूर्व एक बार गहरी जुताई करने के
पश्चात् देशी हल से खेत की जुताई करनी चाहिए। पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना
चाहिए। फसल की दीमक और अन्य भूमिगत कीड़ो से सुरक्षा हेतु अंतिम जुताई के समय 20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से क्लोरपायरीफास अच्छी तरह
खेत में मिला देना चाहिये।
उन्नत
किस्में
पामारोजा की प्रमुख उन्नत किस्मों में मोतिया, सोफिया, तृष्णा, पी. आर. सी. - 1, वैष्णवी और जामा रोशा लोकप्रिय है।
बोवाई और
रोपाई
पामारोजा को बीज से पौध तैयार कर तथा जड़ों की
कटिंग (स्लिप) से अथवा बीज को सीधे खेत में बोया जा सकता है। पौध तैयार करने के
लिए 2.5 - 5 कि. ग्रा.
बीज को 4 से 5 गुना भुरीभुरी मिट्टी में मिलाकर छोटी -
छोटी क्यारियों में मई - जून में बो देते है। हल्की गुड़ाई करके बीज को मिट्टी में
मिलाने के बाद फब्बारे से सिंचाई कर देते है। इसके बाद आवश्यकतानुसार क्यारी विधि
से सिंचाई की जा सकती है। बुआई के लगभग 30 - 40 दिन बाद जब पौधे लगभग 15
- 20 सेमी. हो जाये तो उन्हे सावधानी से उखाड़कर
तैयार खेत में कतारबद्ध तरीके से 60 से 64 सेमी. की दूरी पर पंक्तियो में रोपित करना
चाहिए। पंक्तियों में पौध - से - पौध की दूरी 25 से 30 सेमी. रखना चाहिए। पौध को 10
- 15 सेमी. गहराई पर रोपना उचित रहता है। वर्षा
प्रारंभ होने पर खेत में रोपाई करना चाहिए।
स्लिप या
कल्लों के द्वारा रोपण : पुरानी फसलों के कल्ले या स्लीप के द्वारा भी
45 - 60 सेमी. के
अंतर पर जुलाई से मध्य अगस्त तक रोपाई करते है। इसके लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 40,000 स्लिप्स की आवश्यकता होती है।
बीज की सीधी
बोआई : बीज को सीधा खेत में बोने के लिए 8
- 10 किग्रा. बीज को 15
- 20 गुना रेत या नम मिट्टी में मिलाकर जून -
जुलाई में 50 - 60 सेमी. की
दूरी पर बनी कतारों में बोना चाहिए। कूड़ों की गहराई 2
- 3 सेमी. से अधिक नहीं होना चाहिए।
खाद एवं
उर्वरक
पामारोजा सदाबहार बहुवर्षीय घास होने के कारण
इसे अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। बोनी के समय 40 किग्रा. नत्रजन,
50 किग्रा. स्फुर तथा 40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर कूड़ों में
देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 60 किग्रा. नत्रजन को दो बराबर भाग में बाँटकर फरवरी व अगस्त
में जड़ों के पास देना चाहिए।
खरपतवार
नियंत्रण
प्रारंभिक अवस्था में फसल के साथ उगे
खरपतवारों की निंदाई करना आवश्यक होता है। डायूरान 1.5 किग्रा. या आक्सीफ्लोरफेन 0.5 किग्रा./हे. का छिड़काव करने से भी नींदा
नियंत्रण होता है। प्रत्येक कटाई के बाद कतारों के बीच में हल चलाने से लाभ होता
है।
अधिक उपज के लिए सिंचाई
पामारोजा को असिंचित अवस्था में भी उगाया जा
सकता है परंतु सिंचाई सुविधा होने पर शुष्क ऋतु में 2 सिंचाई तथा ग्रीष्म ऋतु में 3
- 4 सिंचाई करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है।
रोपाई के बाद यदि वर्षा न हो तब सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है।
फसल की कटाई
पामारोजा के हर भाग में तेल होता है। इसके फूल
में सबसे अधिक तेल होता है। सिंचित क्षेत्रों में वर्ष में तीन (सितम्बर - अक्टूबर,
फरवरी - मार्च एवं मई - जून) एवं असिंचित
अवस्था मे दो कटाई ली जा सकती है। कटाई का उपयुक्त समय पुष्प खिलने के समय से
अधपके बीज की अवस्था तक होता है। जब पुष्पक्रम हल्के बादामी रंग का हो जाए उस समय
फसल को 20 - 25 सेमी. जमीन
के ऊपर से हँसिए द्वारा काट लिया जाता है। कटी हुई फसल को छोटे - छोटे गट्ठर बनाकर
छाँवदार जगह में एकत्र कर लेना चाहिए तथा उनका आसवन विधि से तेल निकाल लेना चाहिए।
उपज एवं
आसवन
प्रथम वर्ष में पौधों की बढ़वार व फैलाव कम होने से उपज कम प्राप्त होती है।
सिंचित क्षेत्रों में तीन कटाइयों से औसतन 200 किग्रा. तेल तथा असिंचित अवस्था में दो कटाईयों से लगभग 75 किग्रा. तेल प्रति हे.
प्रति वर्ष प्राप्त किया जा सकता है। रोशा घास में सबसे अधिक तेल इसके पुष्पकुंजो
व पत्तियों में पाया जाता है। पूरे पौधे में औसतन तेल की मात्रा लगभग 0.5 से 0.6 प्रतिशत होती है। जल आसवन
द्वारा पामारोजा तेल 3 - 4 घंटे में पूरी तरह निकल आता है।
नोट: यह लेख सर्वाधिकार सुरक्षित है। अतः बिना लेखक की आज्ञा के इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करना अवैद्य माना जायेगा। यदि प्रकाशित करना ही है तो लेख में लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें