डाँ.जी.एस.तोमर,
प्रोफेसर (एग्रोनॉमी )
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर 492012 (छ.ग.)
सीमित लगत में अधिकतम् फसल उत्पादन
यदि हम पृथ्वी पर पाये जाने वाले पौधों की जैविक क्रिआओं का अध्ययन करें तो पौधो में दो मुख्य क्रिआऐ दिखाई देती है प्रथम प्रकाश संश्लेषण द्वितीय जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण। वास्तव में जीवमंडल में पाये जाने वाले तत्वों में नाइट्रोजन मुख्य तत्व है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है और यही आर्थिक कृषि का प्राथमिक पोषक तत्व भी है जिसे हम फसलों को खाद-उर्वरकों के माध्यम से देते है। फसल उत्पादन में उर्वरकों की भूमिका विशेष महत्वपूर्ण है। आधुनिक सघन खेती में रासायनिक उर्वरकों तथा अन्य कृषि रसायनों के दिन प्रतिदिन बढ़ते हुए असंतुलित प्रयोग से भूमि की संरचना तथा उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस बात ने हमें यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि हम प्रकृति के इस महत्वपूर्ण संसाधन भूमि की उर्वरता संरचना तथा पर्यावरण को लम्बे समय तक कैसे बचाये रखें। दूसरी ओर विश्व व्यापार संगठन में भारत का प्रवेश होने से हमारे आगे न केवल अधिक फसल उत्पादन करने की बल्कि उत्कृष्ट गुणवत्ता बनाए रखने की भी चुनौती है। पर्यावरण को सुरक्षित बनाएं रखते हुए सतत फसल उत्पादन के लिए जैविक खेती अथवा ऐसी खेती जिसमें समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन (जैविक खाद एवं रासायनिक उर्वरको का मिलाजुला उपयोग) किया जाता है, जैव उर्वरकों को सम्मलित करना लाभ प्रद होता है । अब जैविक खेती अथवा समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन में अहम किरदार के रूप में जैव उर्वरको का प्रयोग किया जाता है । जैव उर्वरकों को पूरक खाद के रूप में प्रयोग करने से जैविक खाद एवं रासायनिक उर्वरकों की क्षमता बढ़ती है साथ-साथ फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
क्या हैं जैव उर्वरक ?
भूमि की उर्वरता को टिकाऊ बनाए रखते हुए सतत फसल उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रकृति प्रदत्त जीवाणुओं को पहचानकर उनसे बिभिन्न प्रकार के पर्यावरण हितैषी उर्वरक तैयार किये हैं जिन्हे हम जैव उर्वरक कहते है । इस प्रकार हम कह सकते है की जैव उर्वरक जीवित उर्वरक है जिनमे सूक्ष्म जीव विधमान होते है। फसलों में जैव उर्वरक इस्तेमाल करने से वायुमण्डल में उपस्थित नत्रजन पौधो को (अमोनिअ के रूप में ) सुगमता से उपलब्ध होती है तथा भूमि में पहले से मौजूद अघुलनशील फास्फोरस आदि पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं। चूंकि जीवाणु प्राकृतिक हैं, इसलिए इनके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं पड़ता। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक है, विकल्प कतई नहीं है। रासायनिक उर्वरकों के पूरक के रूप में जय उर्वरकों का प्रयोग करने से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते है।
दर असल जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ में मिश्रण है। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं ज¨ कि प्रायः कल्चर के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है। इनका उपयोग विभिन्न फसलों में नत्रजन एवं स्फूर की आंशिक पूर्ति हेतु किया जा सकता है। इनके उपयोग का भूमि पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि ये भूमि के भौतिक व जैविक गुणों में सुधार कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जैविक खेती में जैव उर्वरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जैविक उर्वरकों के प्रकार
जैव उर्वरको द्वारा प्रदान किये जाने वाले पोषक तत्वों के अनुसार विभिन्न फसलों में भिन्न-भिन्न जैव उर्वरक लाभकारी पाए गए है। फसलोत्पादन में प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख जैव उर्वरक इस प्रकार है।
1.राइजोबियम
राइजोबियम नामक जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में गांठ बनाकर रहते हैं तथा वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन को शोषित कर भूमि में स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते है। अलग-अलग दलहनी फसलों में अलग अलग जाति के राइजोबियम जीवाणु जड़ों पर गांठों का निर्माण करते हैं इसलिए आवश्यक है कि फसल विषेष के अनुसार ही राइजोबियम कल्चर का प्रयोग किया जाए। इस जैव उर्वरक का प्रयोग विभिन्न दलहनी फसलों जैसे अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया,मसूर, मटर, चना, खेसारी, मूंगफली, सोयाबीन आदि में किया जा सकता है। वैसे तो विभिन्न दलहनों की जड़ों पर गांठों का निर्माण करने वाला राइजोबियम जीवाणु भूमि में प्राकृतिक रूप से पाये जाते है, परन्तु कभी-कभी मिट्टी में इनकी पर्याप्त संख्या न होने अथवा मृदा में प्राकृतिक रूप से विद्यमान राइजोबियम जीवाणु की कम सक्रियता के कारण, इस जैव उर्वरक का दलहनों में प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, जिससे फसल में पर्याप्त मात्रा में जड़ ग्रंथियों का निर्माण हो सके। अनेक प्रयोगों से पता चलता है कि विभिन्न दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर के उपयोग से उपज में 10-15 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है (सारणी 1)। इसके प्रयोग से 30-40 किलो रासायनिक नाइट्रोजन की वचत की जा सकती है। यही नहीं दलहनों में राइजोबियम जैव उर्वरक उपयोग का लाभ आगामी फसल में भी परिलक्षित होता है।
2. एजेटोबैक्टर
एजेटोबैक्टर जीवाणु पौधों की जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहते हुए वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है जिसका उपयोग पौधे सुगमता से कर पाते है। यह जैव उर्वरक सभी अनाज गेहूं, जौ, जई ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, सब्जी की फसलें जैसे टमाटर, गोभी, बैगन, आलू आदि, तमाम फूलों तथ अन्य फसलों जैसे गन्ना, कपास, तम्बाकू एवं पटसन आदि में प्रयोग में लाया जाता है। इस जैव उर्वरक के प्रयोग से फसलों को 20-25 कि.ग्रा. नत्रजन उर्वरक के बराबर लाभ प्राप्त होता है अ©र उपज में लगभग 10 प्रतिषत तक की वृद्धि हो जाती है। इसके अतिरिक्त इस जैव उर्वरक से बीज की जमाव क्षमता में भी वृद्धि देखी गई है एवं पौधों में रोगों का प्रकोप भी कम होता है। चूॅकि यह जैव उर्वरक फसलों की सम्पूर्ण नत्रजन तत्व की पूर्ति कर पाने में सक्षम नही है अतः अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए शेष नत्रजन का प्रयोग उर्वरकों द्वारा करना चाहिए।
3. एसीटोबैक्टर
एसीटोबैक्टर जैव उर्वरक गन्ने की फसल के लिए उपयुक्त पाया गया है। जो गन्ने की फसल के लिए नत्रजन वाले उर्वरकों की लगभग 25-30 प्रतिशत की बचत करने में सहायक होता है, इसके प्रयोग से गन्ने की फसल से प्राप्त होने वाली चीनी के परते में 1-2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
4. एजोस्पिरिलम
एजेटोबैक्टर की तरह एजोस्पिरिलम जीवाणु मृदा में स्वतंत्र रूप से निवास करते हुए वायुमण्डलीय नत्रजन को ग्रहण कर पौधों को उपब्ध कराते है। इसका प्रयोग भी विभिन्न धान्य फसलों में किया जा सकता है परन्तु अधिक नमीं में उगायी जाने वाली फसलें जैसे धान, मक्का, बाजरा, ज्वार आदि फसलों में इस जैव उर्वरक का लाभ अधिक देखा गया है। इस जैव उर्वरक के प्रयोग से फसलों को प्रति हेक्टेयर 20-30 कि.ग्रा. नत्रजन उर्वरक के बराबर लाभ मिलता है जिससे फसलों की उपज में 15-20 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है। नत्रजनीय उर्वरक के प्रयोग के साथ भी एजोस्पिरिलम जैव उर्वरक उपयोग का लाभ फसल को होता है । दरअसल, एजोस्पिरिलम जैव उर्वरक का प्रयोग करने से बीज अंकुरण क्षमता बढ़ती है, भूमि से पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में ग्रहण कर सकती है जड़ों का विकास अधिक होता है, और पौधों की लंबाई तथा कल्लों की संख्या में इजाफा होता है जिससे फसलोत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।
5. नील हरित शैवाल (बी.जी.ए.)
नील हरित शैवाल भी प्राकृतिक तथा महत्वपूर्ण जैव उर्वरक है जिसका उपयोग केवल सिंचित धान फसल में ही किया जाता है, क्योंकि इन शैवालों की वृद्धि एवं उत्पादन हेतु खेत में पर्याप्त जल भरा रहना आवश्यक ह¨ता है।यह जैव उर्वरक भी वायुमण्डल की नत्रजन को स्थिर कर फसल को उपलब्ध कराता हैं। इसके द्वारा एकत्र की गई नत्रजन शैवालों के सड़ने के पश्चात ही फसल को प्राप्त होते है। जिसकी सम्पूर्ण मात्रा का उपयोग इस जैव उर्वरक का प्रयोग की जाने वाली फसल नही कर पाती है तथा भूमि में शेष बची नत्रजन अगली फसल को लाभ पहुचाती है। बिभिन्न प्रयोगों में नील हरित शैवालों के जैव उर्वरक द्वारा धान की उपज में 10-15 प्रतिशत तक वृद्धि पाई गई है एवं फसल को लगभग 25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के बराबर नत्रजन उर्वरक प्राप्त होता है। इसके अलावा नील हरित शैवाल भूमि में जीवाश्म पदार्थ की मात्रा में वृद्धि कर भूमि की भौतिक दशा को सुधारने में सहायक होता है।
6. एजोला
एजोला एक प्रकार की जलीय फर्न है जिसकी वृद्धि के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए इसका प्रयोग भी धान की फसल में किया जाता है। आजकल पशुओं को पौष्टिक आहार के रूप में भी एजोला का उपयोग किया जाने लगा है । इसे खिलाने से दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है तथा पशु-पालन में दाना-खली के व्यय को कम किया जा सकता है । धान में एजोला का प्रयोग हरी खाद के रूप में रोपाई से पहले भी किया जा सकता है। यह देखा गया है कि 5 टन एजोला प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद के रूप में प्रयोग करने पर 30 कि.ग्रा. उर्वरक के समतुल्य लाभ प्राप्त होता है।
सारणीः जैव उर्वरकों का विभिन्न फसलों की औषत उपज पर प्रभाव
क्रमांक फसल का नाम जैव उर्वरक उपज में वृद्धि (प्रतिशत)
1. अरहर राइजोबियम 18
2. मूंग राइजोबियम 18
3. उर्द राइजोबियम 11
4. मसूर राइजोबियम 7
5. चना राइजोबियम 10.30
6. गेहूॅ एजोटोबैक्टर,एजोस्पीरिलम 16.39, 1.43
7. धान एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 3.17, 9.50
8. मक्का एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8.53
9. ज्वार एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8.38, 2.27
10. बाजरा एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8, 11
11. जौ एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8, 6
12 कपास एजोटोबैक्टर 7.27
13. गाजर एजोटोबैक्टर 16
14. बन्दगोभी एजोटोबैक्टर 26.45
15. बैगन एजोटोबैक्टर 1.42
16. टमाटर एजोटोबैक्टर 2.24
7. स्फुर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.)
भारत की 80 से 90 प्रतिशत भूमि में फास्फोरस तत्त्व की कमी पाई गई है। पौध विकास एवं दानो को पुष्ट बनाने में फास्फ़ोरस की महत्वपूर्ण य¨गदान ह¨ता है । भूमि में फास्फोरस तत्व की पूर्ति हेतु प्रयोग किये जाने वाले उर्वरकों का मात्र 18-23 प्रतिशत भाग ही फसल को उपलब्ध हो पाता है, शेष भाग अघुलनशील अवस्था में भूमि के अन्दर बेकार पड़ा रहता है। जबकि फास्फेटिक उर्वरकों पर कृषकों की सबसे ज्यादा लागत आती है। कुछ जीवाणु (बैसिलस, स्यूडोमोनास इत्यादि) एवं कवक (एस्परजिलस पेनिसिलियम इत्यादि) भूमि की अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील रूप में परिवर्तित कर इसे पौधों क¨ उपलब्ध करा देते हैं। स्फुर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी अथवा पी.एस.एम.) कल्चर के प्रयोग से भूमि में अघुलनशील अवस्था में उपस्थित फास्फोरस घुलनशील अवस्था में परिवर्तित हो जाता है जिसे पौधेे आसानी से ग्रहण कर सकते है। स्फुर घोलक जैव उर्वरक का उपयोग सभी धान्य, दलहनी एवं तिलहनों फसलों के लिए भूमि में स्फुर की उपलब्धता बढ़ाने में किया जा सकता है। इन फसलों को 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर फास्फोरस उर्वरक के बराबर लाभ होता हैं। इनका उपयोग नत्रजन प्रदान करने वाले जैव उर्वरकों (राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम) के साथ मिलाकर भी किया जा सकता है।
8. माइकोराइजा
माइकोराइजा कवक पौधों के साथ साझेदारी कर पौधों को फास्फोरस एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता आदि के अवषोषण में सहायता करता है। वैसिकुलर आरबस्कुलर माइकोराइजा (वैम) फंजाई विभिन्न धान्य एवं दलहनी फसलों के साथ साझेदारी कर फसलों को लाभ पहुचाती है। इस जैव उर्वरक के प्रयोग से फसलों में प्रयोग की जाने वाली उर्वरकों की 25-30 प्रतिषत तक बचत की जा सकती है। बाजार मे कम उपलब्धता के कारण फसलों में इसका बहुत सीमित प्रयोग ही किया जा रहा है।
1.राइजोबियम
राइजोबियम नामक जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में गांठ बनाकर रहते हैं तथा वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन को शोषित कर भूमि में स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते है। अलग-अलग दलहनी फसलों में अलग अलग जाति के राइजोबियम जीवाणु जड़ों पर गांठों का निर्माण करते हैं इसलिए आवश्यक है कि फसल विषेष के अनुसार ही राइजोबियम कल्चर का प्रयोग किया जाए। इस जैव उर्वरक का प्रयोग विभिन्न दलहनी फसलों जैसे अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया,मसूर, मटर, चना, खेसारी, मूंगफली, सोयाबीन आदि में किया जा सकता है। वैसे तो विभिन्न दलहनों की जड़ों पर गांठों का निर्माण करने वाला राइजोबियम जीवाणु भूमि में प्राकृतिक रूप से पाये जाते है, परन्तु कभी-कभी मिट्टी में इनकी पर्याप्त संख्या न होने अथवा मृदा में प्राकृतिक रूप से विद्यमान राइजोबियम जीवाणु की कम सक्रियता के कारण, इस जैव उर्वरक का दलहनों में प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, जिससे फसल में पर्याप्त मात्रा में जड़ ग्रंथियों का निर्माण हो सके। अनेक प्रयोगों से पता चलता है कि विभिन्न दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर के उपयोग से उपज में 10-15 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है (सारणी 1)। इसके प्रयोग से 30-40 किलो रासायनिक नाइट्रोजन की वचत की जा सकती है। यही नहीं दलहनों में राइजोबियम जैव उर्वरक उपयोग का लाभ आगामी फसल में भी परिलक्षित होता है।
2. एजेटोबैक्टर
एजेटोबैक्टर जीवाणु पौधों की जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहते हुए वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है जिसका उपयोग पौधे सुगमता से कर पाते है। यह जैव उर्वरक सभी अनाज गेहूं, जौ, जई ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, सब्जी की फसलें जैसे टमाटर, गोभी, बैगन, आलू आदि, तमाम फूलों तथ अन्य फसलों जैसे गन्ना, कपास, तम्बाकू एवं पटसन आदि में प्रयोग में लाया जाता है। इस जैव उर्वरक के प्रयोग से फसलों को 20-25 कि.ग्रा. नत्रजन उर्वरक के बराबर लाभ प्राप्त होता है अ©र उपज में लगभग 10 प्रतिषत तक की वृद्धि हो जाती है। इसके अतिरिक्त इस जैव उर्वरक से बीज की जमाव क्षमता में भी वृद्धि देखी गई है एवं पौधों में रोगों का प्रकोप भी कम होता है। चूॅकि यह जैव उर्वरक फसलों की सम्पूर्ण नत्रजन तत्व की पूर्ति कर पाने में सक्षम नही है अतः अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए शेष नत्रजन का प्रयोग उर्वरकों द्वारा करना चाहिए।
3. एसीटोबैक्टर
एसीटोबैक्टर जैव उर्वरक गन्ने की फसल के लिए उपयुक्त पाया गया है। जो गन्ने की फसल के लिए नत्रजन वाले उर्वरकों की लगभग 25-30 प्रतिशत की बचत करने में सहायक होता है, इसके प्रयोग से गन्ने की फसल से प्राप्त होने वाली चीनी के परते में 1-2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
4. एजोस्पिरिलम
एजेटोबैक्टर की तरह एजोस्पिरिलम जीवाणु मृदा में स्वतंत्र रूप से निवास करते हुए वायुमण्डलीय नत्रजन को ग्रहण कर पौधों को उपब्ध कराते है। इसका प्रयोग भी विभिन्न धान्य फसलों में किया जा सकता है परन्तु अधिक नमीं में उगायी जाने वाली फसलें जैसे धान, मक्का, बाजरा, ज्वार आदि फसलों में इस जैव उर्वरक का लाभ अधिक देखा गया है। इस जैव उर्वरक के प्रयोग से फसलों को प्रति हेक्टेयर 20-30 कि.ग्रा. नत्रजन उर्वरक के बराबर लाभ मिलता है जिससे फसलों की उपज में 15-20 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है। नत्रजनीय उर्वरक के प्रयोग के साथ भी एजोस्पिरिलम जैव उर्वरक उपयोग का लाभ फसल को होता है । दरअसल, एजोस्पिरिलम जैव उर्वरक का प्रयोग करने से बीज अंकुरण क्षमता बढ़ती है, भूमि से पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में ग्रहण कर सकती है जड़ों का विकास अधिक होता है, और पौधों की लंबाई तथा कल्लों की संख्या में इजाफा होता है जिससे फसलोत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।
5. नील हरित शैवाल (बी.जी.ए.)
नील हरित शैवाल भी प्राकृतिक तथा महत्वपूर्ण जैव उर्वरक है जिसका उपयोग केवल सिंचित धान फसल में ही किया जाता है, क्योंकि इन शैवालों की वृद्धि एवं उत्पादन हेतु खेत में पर्याप्त जल भरा रहना आवश्यक ह¨ता है।यह जैव उर्वरक भी वायुमण्डल की नत्रजन को स्थिर कर फसल को उपलब्ध कराता हैं। इसके द्वारा एकत्र की गई नत्रजन शैवालों के सड़ने के पश्चात ही फसल को प्राप्त होते है। जिसकी सम्पूर्ण मात्रा का उपयोग इस जैव उर्वरक का प्रयोग की जाने वाली फसल नही कर पाती है तथा भूमि में शेष बची नत्रजन अगली फसल को लाभ पहुचाती है। बिभिन्न प्रयोगों में नील हरित शैवालों के जैव उर्वरक द्वारा धान की उपज में 10-15 प्रतिशत तक वृद्धि पाई गई है एवं फसल को लगभग 25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के बराबर नत्रजन उर्वरक प्राप्त होता है। इसके अलावा नील हरित शैवाल भूमि में जीवाश्म पदार्थ की मात्रा में वृद्धि कर भूमि की भौतिक दशा को सुधारने में सहायक होता है।
6. एजोला
एजोला एक प्रकार की जलीय फर्न है जिसकी वृद्धि के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए इसका प्रयोग भी धान की फसल में किया जाता है। आजकल पशुओं को पौष्टिक आहार के रूप में भी एजोला का उपयोग किया जाने लगा है । इसे खिलाने से दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है तथा पशु-पालन में दाना-खली के व्यय को कम किया जा सकता है । धान में एजोला का प्रयोग हरी खाद के रूप में रोपाई से पहले भी किया जा सकता है। यह देखा गया है कि 5 टन एजोला प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद के रूप में प्रयोग करने पर 30 कि.ग्रा. उर्वरक के समतुल्य लाभ प्राप्त होता है।
सारणीः जैव उर्वरकों का विभिन्न फसलों की औषत उपज पर प्रभाव
क्रमांक फसल का नाम जैव उर्वरक उपज में वृद्धि (प्रतिशत)
1. अरहर राइजोबियम 18
2. मूंग राइजोबियम 18
3. उर्द राइजोबियम 11
4. मसूर राइजोबियम 7
5. चना राइजोबियम 10.30
6. गेहूॅ एजोटोबैक्टर,एजोस्पीरिलम 16.39, 1.43
7. धान एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 3.17, 9.50
8. मक्का एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8.53
9. ज्वार एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8.38, 2.27
10. बाजरा एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8, 11
11. जौ एजोटोबैक्टर, एजोस्पीरिलम 8, 6
12 कपास एजोटोबैक्टर 7.27
13. गाजर एजोटोबैक्टर 16
14. बन्दगोभी एजोटोबैक्टर 26.45
15. बैगन एजोटोबैक्टर 1.42
16. टमाटर एजोटोबैक्टर 2.24
7. स्फुर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.)
भारत की 80 से 90 प्रतिशत भूमि में फास्फोरस तत्त्व की कमी पाई गई है। पौध विकास एवं दानो को पुष्ट बनाने में फास्फ़ोरस की महत्वपूर्ण य¨गदान ह¨ता है । भूमि में फास्फोरस तत्व की पूर्ति हेतु प्रयोग किये जाने वाले उर्वरकों का मात्र 18-23 प्रतिशत भाग ही फसल को उपलब्ध हो पाता है, शेष भाग अघुलनशील अवस्था में भूमि के अन्दर बेकार पड़ा रहता है। जबकि फास्फेटिक उर्वरकों पर कृषकों की सबसे ज्यादा लागत आती है। कुछ जीवाणु (बैसिलस, स्यूडोमोनास इत्यादि) एवं कवक (एस्परजिलस पेनिसिलियम इत्यादि) भूमि की अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील रूप में परिवर्तित कर इसे पौधों क¨ उपलब्ध करा देते हैं। स्फुर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी अथवा पी.एस.एम.) कल्चर के प्रयोग से भूमि में अघुलनशील अवस्था में उपस्थित फास्फोरस घुलनशील अवस्था में परिवर्तित हो जाता है जिसे पौधेे आसानी से ग्रहण कर सकते है। स्फुर घोलक जैव उर्वरक का उपयोग सभी धान्य, दलहनी एवं तिलहनों फसलों के लिए भूमि में स्फुर की उपलब्धता बढ़ाने में किया जा सकता है। इन फसलों को 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर फास्फोरस उर्वरक के बराबर लाभ होता हैं। इनका उपयोग नत्रजन प्रदान करने वाले जैव उर्वरकों (राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम) के साथ मिलाकर भी किया जा सकता है।
8. माइकोराइजा
माइकोराइजा कवक पौधों के साथ साझेदारी कर पौधों को फास्फोरस एवं सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता आदि के अवषोषण में सहायता करता है। वैसिकुलर आरबस्कुलर माइकोराइजा (वैम) फंजाई विभिन्न धान्य एवं दलहनी फसलों के साथ साझेदारी कर फसलों को लाभ पहुचाती है। इस जैव उर्वरक के प्रयोग से फसलों में प्रयोग की जाने वाली उर्वरकों की 25-30 प्रतिषत तक बचत की जा सकती है। बाजार मे कम उपलब्धता के कारण फसलों में इसका बहुत सीमित प्रयोग ही किया जा रहा है।
कैसे करें जैव उर्वरकों का प्रयोग ?
जैव उर्वरकों का प्रयोग करने की निम्न विधियाँ है ।
1.बीज उपचारः राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम एवं फास्फेट विलयकारी जैव उर्वरकों ( पी एस बी कल्चर) के प्रयोग के लिए बीज उपचार विधि ही सुविधाजनक एवं प्रचलन में है। सामान्यतः किसी भी फसल के 10 कि.ग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए एक पैकेट (200 ग्राम) जैव उर्वरक पर्याप्त होता है। जैव उर्वरक की इस मात्रा को 200-500 मि.ली. गुड़ या चीनी के ठण्डे घोल में मिलाकर घोल बना लें। तत्पष्चात जैव उर्वरक के इस घोल को बीजों के उपर डालकर उसे बीजों के साथ इस प्रकार मिला ले कि प्रत्येक बीज के उपर जैव उर्वरक की एक पतली परत बन जाए। जैव उर्वरक से उपचार करने के बाद बीज काले रंग के दाने जैसे दिखते हैं। जैव उर्वरकों से उपचारित बीजों को थोड़ी देर छाया में सुखाकर तुरन्त बुआई कर देना चाहिए। दो या अधिक जैव उर्वरकों को एक साथ प्रयोग करने के लिए इनकी आवश्यक मात्रा का एक साथ घोल बनाकर बीजों का उपचार करना चाहिए।
2.भूमि उपचारः इस विधि द्वारा एजेटोबैक्टर, एसीटोबैक्टर एवं पीएसएम जैव उर्वरकों का प्रयोग सभी खाद्यान्नों की फसलों, गन्ना, तिलहन फसलों, सब्जी फसलों, फूलों आदि में किया जा सकता है। इस विधि में जैव उर्वरकों की लगभग 2-5 कि.ग्रा. मात्रा को 100 कि.ग्रा. अच्छी प्रकार सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट में मिलाकर खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई से पूर्व खेत में एक साथ छिड़क कर मिट्टी में मिला दें।
3.कन्द उपचारः आलू की फसल में एजोटोबैक्टर व पीएसएम का उपयोग करने के लिये प्रति हे.2 कि.ग्रा. जैव उर्वरकों को 20-25 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें बीज को 5 मिनट के लिये डुबोकर बुवाई करें। गन्ने की फसल में एसीटोबैक्टर जैव उर्वरक क¨ 5-6 किलो प्रति.हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए।
4.जड़ उपचार विधिः यह विधि रोपाई वाली फसलों में प्रयोग की जाती है। इस विधि में 1-2 किग्रा. जैव उर्वरकों को 10-20 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिये रोपाई हेतु पौधों को रोपाई से पूर्व 10 मिनट के लिये जड़ो को डुबोकर रोपाई की जाती है।
जैव उर्वरक प्रयोग विशेष सावधानियाॅं
यह बात सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के विकल्प नहीं है। पूरक उर्वरक के रूप में ही इनका उपयोग किया जाता है। मृदा परिक्षण के आधार पर फसलों की पोषक तत्वों की आवश्यकता का निर्धारण करने के पश्चात उनकी पूर्ति करना चाहिए। जैव उर्वरकों का रासायनिक एवं कार्बनिक खादों के साथ बेहतर समन्वय बनाकर उपयोग करना अधिक फायदेमंद होता है। फसल के लिये निर्धारित जैव उर्वरक ही प्रयोग करें। जैव उर्वरकों का उपयोग करते समय अग्र प्रस्तुत बातें ध्यान में रखना आवश्यक है ।
1.बीज उपचारः राइजोबियम, एजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम एवं फास्फेट विलयकारी जैव उर्वरकों ( पी एस बी कल्चर) के प्रयोग के लिए बीज उपचार विधि ही सुविधाजनक एवं प्रचलन में है। सामान्यतः किसी भी फसल के 10 कि.ग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए एक पैकेट (200 ग्राम) जैव उर्वरक पर्याप्त होता है। जैव उर्वरक की इस मात्रा को 200-500 मि.ली. गुड़ या चीनी के ठण्डे घोल में मिलाकर घोल बना लें। तत्पष्चात जैव उर्वरक के इस घोल को बीजों के उपर डालकर उसे बीजों के साथ इस प्रकार मिला ले कि प्रत्येक बीज के उपर जैव उर्वरक की एक पतली परत बन जाए। जैव उर्वरक से उपचार करने के बाद बीज काले रंग के दाने जैसे दिखते हैं। जैव उर्वरकों से उपचारित बीजों को थोड़ी देर छाया में सुखाकर तुरन्त बुआई कर देना चाहिए। दो या अधिक जैव उर्वरकों को एक साथ प्रयोग करने के लिए इनकी आवश्यक मात्रा का एक साथ घोल बनाकर बीजों का उपचार करना चाहिए।
2.भूमि उपचारः इस विधि द्वारा एजेटोबैक्टर, एसीटोबैक्टर एवं पीएसएम जैव उर्वरकों का प्रयोग सभी खाद्यान्नों की फसलों, गन्ना, तिलहन फसलों, सब्जी फसलों, फूलों आदि में किया जा सकता है। इस विधि में जैव उर्वरकों की लगभग 2-5 कि.ग्रा. मात्रा को 100 कि.ग्रा. अच्छी प्रकार सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट में मिलाकर खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई से पूर्व खेत में एक साथ छिड़क कर मिट्टी में मिला दें।
3.कन्द उपचारः आलू की फसल में एजोटोबैक्टर व पीएसएम का उपयोग करने के लिये प्रति हे.2 कि.ग्रा. जैव उर्वरकों को 20-25 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें बीज को 5 मिनट के लिये डुबोकर बुवाई करें। गन्ने की फसल में एसीटोबैक्टर जैव उर्वरक क¨ 5-6 किलो प्रति.हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए।
4.जड़ उपचार विधिः यह विधि रोपाई वाली फसलों में प्रयोग की जाती है। इस विधि में 1-2 किग्रा. जैव उर्वरकों को 10-20 लीटर पानी में घोल बनाकर उसमें एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिये रोपाई हेतु पौधों को रोपाई से पूर्व 10 मिनट के लिये जड़ो को डुबोकर रोपाई की जाती है।
जैव उर्वरक प्रयोग विशेष सावधानियाॅं
यह बात सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के विकल्प नहीं है। पूरक उर्वरक के रूप में ही इनका उपयोग किया जाता है। मृदा परिक्षण के आधार पर फसलों की पोषक तत्वों की आवश्यकता का निर्धारण करने के पश्चात उनकी पूर्ति करना चाहिए। जैव उर्वरकों का रासायनिक एवं कार्बनिक खादों के साथ बेहतर समन्वय बनाकर उपयोग करना अधिक फायदेमंद होता है। फसल के लिये निर्धारित जैव उर्वरक ही प्रयोग करें। जैव उर्वरकों का उपयोग करते समय अग्र प्रस्तुत बातें ध्यान में रखना आवश्यक है ।
- जैव उर्वरकों से मिलने वाला लाभ जैव उर्वरकों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। अतः किसी सरकारी संस्थान या विश्वसनीय स्त्रोत से उच्च गुणवत्ता का जैव उर्वरक ही क्रय करना चाहिए।
- यह जीवित जीवाणुओं का मिश्रण है, इसलिए इन्हें तेज धूप, उच्च तापक्रम से सदैव बचाये रखें, अन्यथा उनके जीवाणु मरने शुरू हो जाते है। गर्मियों में भण्डारण के लिये मकान के कोने में रेत के अन्दर घड़े मे रखें तथा रेत पर पानी छिड़कर कर भिगोते रहें।
- कल्चर पैकेट खरीदते समय उनकी निर्माण तिथि अवश्य देख लें और उनका उपयोग निर्धारित अन्तिम तिथि से पूर्व ही कर लेना चाहिए। पैकेट उपयोग के समय ही खोलें।
- जैव उर्वरकों का चयन फसलों के अनुसार किया जाना चाहिए। मसलन प्रत्येक दलहनी फसल का राइजोबियम कल्चर अलग होता है। पी.एस.एम. जैव उर्वरक सभी फसलों के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं।
- जैव उर्वरकों को खेत में प्रयोग किए जाने वाले उर्वरकों तथा अन्य रासायनों (कीटनाशक, फंफूदनाशक या शाकनाशी) के सम्पर्क में नही आने देना चाहिए। इससे लाभ की अपेक्षा अधिक हानि हो सकती है।
- जैव उर्वरकों से बीज का उपचार किसी स्वच्छ फर्श, पालिथीन या बोरे पर करना चाहिए।
- यदि किसी रसायन से बीजशोधन किया जाना आवश्यक हो तो बीज को पहले रसायनों से उपचारित करें । इसके उपरांत जैव उर्वरकों से उपचार करना चाहिए। ऐसी स्थिति में जैव उर्वरकों की मात्रा दुगुनी करना लाभप्रद रहता है।
- जैव उर्वरकों से उपचार के बाद बीजों को छाया में कुछ देर सुखाकर शीघ्र ही बुआई कर देना चाहिए एवं कुडों को ढंक देना चाहिए।
इस प्रकार फसल के अनुसार जैविक उर्वरकों का उपरोक्तानुसार एक पूरक खाद के रूप में उपयोग कर कृषक भाई सीमित लागत में अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते है । इतना ही नहीं इससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी जिससे पर्यावरण हितैषी सतत फसल उतप्तादन को बढ़ावा मिलेगा ।
नोट: इस ब्लॉग के लेख लेखक की बिना अनुमति के अन्यत्र प्रकाशित करना अपराधिक हो सकता है। अतः प्रकाशन से पूर्व लेखक की अनुमति के साथ साथ लेखक का नाम देना अनिवार्य है।
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